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________________ १. पक्षपात व एकान्त - ३ पक्षपात का कारण - इस पक्षपात की उत्पत्ति के कई कारण है । उनको भी जान ३. पक्षपात का लेना यहा आवश्यक है, क्योकि उनको जाने बिना कारण में सावधानी किस दिशा मे व गा, और सावधानी वर्ते बिना पक्षपात को दूर भी कैसे कर सकूगा । केवल शब्दो मे ही बात कर रहा हूं कि “पक्षपात बुरा है। इसे दूर हो जाना चाहिये ।" और ऐसा ही आगे करता रहूँगा । न अब तक अपनी भूल को स्वीकार करके उसे दूर करने पर प्रयत्न किया है और न ही करूगा । पक्षपात दूर कैसे होगा ? भूल को जीवन में खोजे बिना केवल बात करने से भूल दूर न होगी । भूल दूर करने के लिये प्रयास करना होगा, बल लगाना होगा । पर प्रयत्न प्रारम्भ करने से पहले भी उस भूल को जानना आवश्यक है । अतः अब सुन, गुरुदेव तुझे वह भूल बता रहे है, जिसके बल पर कि यह पक्षपात जन्मा तथा पुष्ट हुआ है । पहिला कारण है किसी बात को पूरा न सुनना तथा अधूरा ही सुनकर तृप्त हो जाना । जैसे कोई एक ज्ञानी जिसके हृदय मे अनेको बाते कहने के लिए पड़ी है, कुछ बात कह रहा है । मैने उसे आज सुना। पर कल मै सुनने न जा सका । कल आपने सुना हम दोनो को ही वे बाते अच्छी लगी, और समझ बैठे कि जीवन की भलाई का सर्वस्व हमने सीख लिया, अर्थात् इतना ही कुछ पर्याप्त है, इससे अधिक वह वक्ता और कहेगा ही क्या । एक अहकार व अभिमान उत्पन्न हो गया कि मैने एक नई बात सीखी है, जो अन्य साधारण व्यक्ति -- नही जानते । मै उस बात का उनमे प्रचार करने लगा । नई बात सुनकर उनके अन्दर से स्वाभाविक प्रशसा के भाव निकल पड़े, जिसने मेरी लोकेषण को उत्तेजित कर दिया, अभिमान को और बल दिया, ज्ञान मे करडाई आ गई। किसी के सामने झुकना मै भूल गया, अर्थात् किसी अन्य की बात समझने की पहिली भावना विलुप्त हो गई, क्योकि अपनी धारणा के आधार पर आज में सब कुछ - मानो जान चुका हूँ, या यू कहिये कि सर्वज्ञ बन चुका हूँ-बिना इस बात को विचारे
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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