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________________ १२ नैगम नय २३२ १. नैगम नय सामान्य है । भले ही गधे को सीग न होते हो, पर ज्ञान मे सीग वाले गधे पदार्थ की कल्पना होना भी सम्भव है । अर्थ नय तो केवल सत्ता भूत को ही जान सकता है परन्तु ज्ञान या नैगम नय का व्यापार उपरोक्त प्रकार से असत् पदार्थ मे भी होता है । सत्ता भूत पदार्थ मे भी इस नय का व्यापार अत्यन्त विस्तृत है । संग्रह व व्यवहार दोनो अर्थ नये इसके पेट में पड़ी हैं। ज्ञान नय होने के कारण यह वस्तु की त्रिकाली पर्यायो का ग्रहण या संकल्प करने मे समर्थ है, भले हो वस्तु मे वे पर्याये विनष्ट हो चुकी है या अभी उत्पन्न नही हुई है । यह नय सर्व गुणों की त्रिकाल गोचर पर्यायो वाले द्वैत को एक माला के रूप में गूथ कर उसे अद्वैत रूप प्रदान कर सकता है इसलिये अर्थ नय के अन्तर्गत भी द्रव्याथिक के रूप में इसका ग्रहण होता है । उपरोक्त प्रकार इसकी व्यापकता का परिचय निम्न लक्षणों पर से आका जा सकता है । १ लक्षण न० १ - पहिला लक्षण तो 'नैगम' शब्द की व्युत्पत्ति पर से लिया गया है । 'निगम' शब्द का अर्थ सकल्प है । उसमे जो रहे सो नैगम है । निगम शब्द का अर्थ है ' अन्दर से बाहर निकलना ' । ज्ञान में से स्वय फूट कर बाहर निकलना निगम कहलाता है, अर्थात् शान्त व स्थिर ज्ञान मे सहसा ही जो विकल्प उत्पन्न होता है, उसे निगम कहते है । उस निगम या विकल्प अथवा सकल्प में जो रहे सौ नैगम है । इस प्रकार नैगम नय संकल्प मात्र ग्राही प्राप्त होता है । सकल्प भी दो प्रकार का हो सकना सम्भव है - प्रमाण भूत व अप्रमाणभूत । सत्ताधारी किसी पदार्थ के सम्बन्ध मे होने वाला संकल्प प्रमाण भूत है, जैसे राजकुमार मे राजापने का संकल्प अथवा
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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