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________________ ११ शास्त्रीय नय सामान्य २२८ ५. सात नयो में उत्तरोत्तर - सूस्मता सामान्य में रहने वाले अनेक भेदो या विशेषों को युगपत ग्रहण करके भेदात्मक सामान्य को परिपूर्ण वस्तु स्वीकार करता है। अत इसका विषय भी नैगम से अल्प है । अभेद ग्राही सग्रह नय से भी इसका विषय अल्प है, क्योकि अभेद की अपेक्षा भेद अल्प होता है। ५. 'ऋजु सूत्र नय' व्यवहार के विषय भूत भेदो व विशेषों मे से भी केवल अन्तिम एक भेद या विशेष को पृथक निकाल कर उसे ही परिपूर्ण वस्तु रूप से ग्रहण करता है । अतः इसका विषय व्यवहार नय से भी अल्प है। ६. 'शब्द नय' ऋजु सूत्र नय द्वारा स्वीकृत एकार्थ वाची अनेक शब्दों में से केवल समान लिंगादि वाले कुछ कुछ शब्दों को ही एकार्थ वाची स्वीकार करता है । अत. इसका विषय ऋजु सूत्र से भी अल्प है। .. ७. 'समभिरूढ़ नय' शब्द नय के द्वारा स्वीकृत एकार्थ वाची समान लिगी आदि अनेक शब्दों मे से भी एक एक शब्द का एक एक ही अर्थ स्वीकार करता है । अतः इसका विपय शन्द नय से भी अल्प है। ८. 'एवं भूतनय' समभिरूढ़ नय द्वारा स्वीकृति शन्द को भी वस्तु की सर्व अवस्थाओं का सामान रूप से वाचक स्वीकार न करके, उसकी भिन्न भिन्न अवस्थाओं के वाचक भिन्न भिन्न शन्द स्वीकार करता है । अत. इस नय का विषय समभिरूढ़ नय से भी अल्प है। इस प्रकार विचार करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि इन सातों नयों में नैगम नय सवसे अधिक स्थल है, संग्रह उसकी अपेक्षा
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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