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________________ १०. मुख्य गौण व्यवस्था २०४ जीव सामान्य व मुक्त का प्रसंग न होने के कारण, न व अङ्ग है और न अङ्गी । इसी प्रकार त्रस जीव की अपेक्षा दो इन्द्रिय आदि भेद तथा इनके आगे के सर्व उत्तर भेद तो अङ्ग हैं और वह अकेला सजीव अङ्गी है | यहा स्थावर जीव का प्रसग न होने से वह तथा उसके सर्व पृथिवी आदि भेद, न अङ्ग है न अङ्गी । और इसी प्रकार आगे भी यथा योग्य अन्तिम भेद तक समझ लेना । अङ्ग और अङ्गी की यह व्यवस्था तो द्रव्य व द्रव्य पर्यायों या व्यञ्जन पर्यायो मे लागू होती है । द्रव्य गुणों में भी इसी प्रकार लागू की जा सकती है । वहा सर्व गुण तो अङ्ग है और द्रव्य अङ्गी । इसी प्रकार व्यञ्जन पर्याय व अर्थ पर्यायों मे यथा योग्य सर्व अर्थ पर्याये अङ्ग है और व्यञ्जन पर्याय अङ्गी । उसके अतिरिक्त अन्य के व्यञ्जन पर्याय न अङ्ग है न अङ्गी । इसी प्रकार सर्वत्र ऊपर ऊपर भेद अङ्गी और नीचे नीचे के अङ्ग बनते जाते है, जहा तक कि अन्तिम अङ्ग अर्थात ज्ञान की अपेक्षा मति ज्ञान की क्षणिक व सूक्ष्म अर्थ पर्याय प्राप्त न हो जाये । यहां इतना अवश्य समझ लेना चाहिये कि अभी अनेक अङ्गो का स्वामी व समूह होता है, अत. अङ्गी सदा बडा होता है और अङ्ग छोटा, या उसका एक भेद या भाग मात्र । ३. किस को मुख्य किया जाये अङ्ग अङ्गी की इस व्यवस्था मे सर्वत्र अङ्ग को विशेषण बनाया जाता है और अङ्गी को विशेष । क्योकि भेदों पर से अभेद का निर्णय करने या कराने का नियम सिद्ध किया जा चुका है । यही विशेषण विशेष व्यवस्था है । ३ किसको विशेषण व विशेष मे से किसको मुख्य किया जाये तथा किसको गौण, यह प्रश्न आता है ? सो भाई । वस्तु मे जाकर देखे या तद्ररूप प्रमाण ज्ञान मे जाकर देखे तो, वहा विशेषण व विशेष दोनों एक साथ निवास मुख्य किया जाये
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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