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________________ } मुख्य गौण व्यवस्था २०२ विशेषण विशेष्य व्यवस्था के भेद व अभेद दो भागो मे से, किसी भी एक को प्रयो वस्तु जन वश मुख्य करके, उस समय के लिये दूसरे भाग को गौण करना, मुख्य गौण व्यवस्था कहलाती है । यह नियम सर्वत्र आगे के प्रकरणो मे लागू होगा । अत अच्छी तरह याद कर लेना । o साथ साथ यह न भूलना कि यह नियम ज्ञान की अपेक्षा जानने मे ही अर्थात आगम पद्धति मे ही लाग होता है, अध्यात्म पद्धति मे नही । क्योकि वहा चारित्र की प्रधानता से जानना होता है इसलिये वहा मुख्य का अर्थ जीवन के लिये हितकर व उपादेय और गौण का अर्थ जीवन के लिये अहितकर व हेय होता है । अत आगम पद्धति मे तो क्षण भर के लिये ही किसी अंग को मुख्य व किसी अङ्ग को गौण किया जाता है, परन्तु अध्यात्म पद्धति मे सर्वदा के लिये ही किसी अङ्ग को मुख्य या किसी अङ्ग को गौण किया जाता है अर्थात वहां सर्वदा के लिये ही किसी अङ्ग को ग्राह्य और किसी अङ्ग को त्याज्य स्वीकार किया जाता है । जैसे कि उपादान की वहां सर्वदा मुख्यता व निमित्त की वहा सर्वदा गौणता ही रहती है । अत अध्यात्म पद्धति में मुख्य गौण व्यवस्था विधि निषेध व्यवस्था का रूप धारण कर लिया करती है । तात्पर्य यह कि आगम पद्धति में तो कभी द्रव्यार्थिक नय ग्राह्य हो जाता है और कभी पर्यायर्थिक नय, पर अध्यात्म मे सर्वत्र द्रव्यार्थिक नय ही प्रधान रहता है, पर्यायार्थिक या व्यवहार नय का सदा निषेध किया जाता है । किसी भी अपरिचित विषय को जनाने याजानने के लिये, सदा ही २. विशेषण वस्तु के भेदो व अगो को, वचन क्रम का तथा विशेष व्यवस्था श्रोता के ज्ञान क्रम का आधार बनाया जाता है | इसके बिना अन्य मार्ग नही । तथा अभेद रूप वस्तु इस आधार पर से जनाई या जानी जाती है । अत वस्तु के भेद व अभेद दो भागो मे से, भेद तो गुरु व शिष्य के मध्य आधार होता है और अभेद
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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