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________________ १० मुख्य गौण व्यवस्था २०० १. मुख्य गौण व्यवस्था का अर्थ जिस प्रकार वहा पहिले नमक मिर्च आदि मसालो के पृथक पृथक स्वाद को श्रोता के ध्यान मे स्थापित किया गया था, उसी प्रकार यहा पहिले मति श्रुत ज्ञान व अन्य क्षणिक अनुभवनीय अगों के पृथक पृथक भावो को श्रोता के ध्यान में स्थापित किया जायगा । तत्पश्चात जिस प्रकार वहा क्रम पूर्वक पानी में नमक फिर मिर्च आदि घोल घोल कर उस मिश्रित स्वाद को ध्यान मे स्थापित किया गया था, उसी प्रकार यहा भी क्रम पूर्वक ज्ञान मे राग फिर भोगो की श्रद्धा और फिर अशान्ति को घोल घोलकर उसके मिश्रित भाव को ध्यान में स्थापित किया जायेगा । जिस प्रकार अन्त मे जाकर वहा श्रोता को नमक मिर्च आदि का स्वाद भूल जाने के लिये कहा था, उसी प्रकार अत मे आकर यहा भी श्रोता को मति ज्ञान अशान्ति आदि के भावो को भूल जाने के लिये कहा जायगा । जिस प्रकार वहा एक रस रूपी जीरे के पानी का स्वाद ही मुख्यतः याद रखने के लिये कहा गया था उसी प्रकार यहां भी उन सब खण्डित अगो का एक रस रूप चैतन्य ही मुख्यत याद रखने के लिये कहा जायेगा । यही जीव द्रव्य की एक अखण्ड संसारी पर्याय का परिचय है। इसी प्रकार मति ज्ञान की बजाये केवल ज्ञान और राग आदि की बजाये वीतरागता, स्वात्म श्रद्धा व शान्ति के मिश्रण से सिद्ध पर्याय का परिचय भी दिया जा सकता है । तदनन्तर ससारी व सिद्ध दोनो पर्यायो को एक अट फिल्म में जड लेने पर त्रिकाली जीव या आत्मा का परिचय भी दिया जा सकता है । इस क्रम के अन्तर्गत कहे गये दृष्ट्रान्त व दाष्ट्रान्त दोनो पर से यही पढने मे आता है कि पहिले वस्तु के अगों या विशेषणों की और श्रोता का लक्ष्य खेच कर, पीछे उस लक्ष्य को तो भूलने या दबाने को को कहा गया है और उन विशेषणों के आधार पर अनुमान मे आये हए किसी एक अखण्ड भाव या विशेष को ग्रहण करने या याद रखने के लिये कहा गया है।
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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