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________________ प्रत्येक शब्द एक न है ९. नय की स्थापना १८१ हरेक शब्द का कुछ अर्थ उसी समय बन पाता है, जब कि यह समझ लिया जाय, कि यह शब्द किस अदृष्ट भाव गुण या पर्याय के प्रति संकेत करता है । यदि यह समझे बिना केवल वचन ही याद किया जाये, तो उसका संकेत किसी भी सत्ता भूत भाव के प्रति उस श्रोता का लक्ष्य ले न जा सकेगा, और इसलिये निरर्थक रहेगा । अत प्रत्येक शब्द के वाच्य भाव को ग्रहण करके ही शब्द को कहना व सुनना सार्थक होता है । एक बार भाव समझाने के पश्चात पुनः पुनः समझाना नही पडता । फिर तो एक छोटे से शब्द मात्र का सकेत भी उस भाव को दर्शाने को पर्याप्त है । इसलिये जितने भी शब्द शब्द_ कोष मे भरे पड़े हैं, वे सब ही नय हैं । और समय समय पर अनेकों शब्द या नयी नय जागृत हो सकती है । आगम में लिखी है कि नही लिखी है यह कोई परीक्षा नही है। न तो सारी लिखी जा सकती है, और न सारी कही जा सकती है । बुद्धि का अभ्यास करने के लिये कुछ मात्र के भाव दर्शा कर उनके प्रयोग की रीति बतायी जा सकती है । आगे तो वह अभ्यस्त बुद्धि स्वय काम करेगी । किस स्थान पर वक्ता की क्या दृष्टि है, यह बुद्धि ही पहिचानेगी । उस दृष्टि को पहिचान कर ही श्रोता उस दृष्टि को कुछ नाम दे सकेगा । या कदाचित पूछने पर वक्ता भी श्रोता का सकेंत उस दृष्टि के नाम या नय के नाम द्वारा, उस ओर आकृष्ट कर सकेगा । इस प्रयोजन की सिद्धि के अर्थ आप स्वतंत्र रूप से भी अपनी दृष्टि के प्रति सकेत करने के लिये, अपने श्रोताओ को कोई भी नाम या शब्द अपनी और से निश्चित करके बता सकते है, कि जब जब मं 1 यह शब्द कहूंगा तब तब आप इस शब्द का यह अर्थ या भाव या दृष्टि 'समझ जाना ।' आगे प्रयोग किया जाने पर उस श्रोता के लिये तो वह शब्द अपने भाव का प्रतिनिधित्व करने मे सफल हो जाता है, परन्तु दूसरे नये श्रोता उससे कुछ भी भाव समझ नहीं पाते। वह अपनी बुद्धि के अनुसार उस शब्द के वह अर्थ लगाने लगते हैं जो कि 1-1
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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