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________________ ६. नय की स्थापना १७६ ५. प्रत्येक शब्द एक नय है भी वह बोल गया । साधारण व्यक्ति के रूप मे बोलता तब भी कुछ और बात थी, परन्तु उसने यह बात न्याय के सिहासन पर बैठकर बोली बोलते समय उसे यह विचार न आया, कि इस एक छोटे से वचन से असख्याते जीव हिसक होकर अपना अकल्याण कर बैठेगे । और ऐसा ही उसका फल हुआ भी । इसीसे वह उस विषय सम्बन्धी सम्यग्ज्ञानी होते हुए भी, अधोगति का पात्र हुआ । बस इसी प्रकार तू जिस समय, शास्त्र की गद्दी पर बैठा है, उस समय साधारण व्यक्ति नही, गुरु का प्रतिनिधि है। तेरा एक भी शब्द असंख्याते जीवों के कल्याण व अकल्याण का कारण बन सकता है। अतः वचन सम्बन्धी बहुत विवेक रखने की आवश्यकता है । भले ही तेरा ज्ञान सत्य हो, अर्थात् प्रमाण हो, परन्तु यदि कदाचित उपरोक्त विवेक शून्य होकर, अपने किसी पक्ष पोषण वश, एक प्रमुख बात ही बारबार कहता रहेगा, और उसकी विरोधी बात को अश मात्र या सकेत मात्र रूप मे भी न कहेगा, तो श्रोता बेचारा कहा जायेगा । वह क्या जाने कि तेरे अन्दर मे दोनों अगों की सापेक्षता मौजुद है । उसका तो आधार वचन है । उसमे सापेक्षता आने पर ही वह कल्याण की ओर झुकेगा, अन्यथा अकल्याण की ओर झुकने की सम्भावना है । अर्थात् "राग से वीतरागता की प्राप्ति असम्भव है" बराबर यही बात सुनते सुनते उसकी दृष्टि कदाचित वीतराग देवादि के प्रति से भी उपेक्षित हो जायेगी, और इस प्रकार वह अहित कर बैठेगा । अतः यदि उपरोक्त विवेक उत्पन्न नहीं कर पाया तो ऐसा न हो कि कदाचित राजा वसू वाली उपमा को प्राप्त होकर, त अपना भी अहित कर बैठ। वीतरागी गरुओं की शरण मे आकर हित ही को अपना, अहित को नही। प्रभु तेरी रक्षा करे। कथन करने की अनेकों दृष्टिये हो सकती है। जितनी दृष्टियों ५. प्रत्येक शब्द से मुख्य करके कथन किया जाता है उतने ही वचन एक नय है विकल्प हो जाते हैं । यह सर्व ही वचन विकल्प 'नय'
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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