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________________ 5. सप्त भगी १५६ ७ सात भगो की सार्थकता “उस समय उन छ श्रेणियों को प्राप्त तथा विवाद ग्रस्त उन अज्ञानी जनो के द्वारा उठाये हुए कुतर्कों का स्पष्टीकरण बिना बताये भी तुम्हारे ज्ञान मे स्वतः प्रकाशित हो जायेगा, और तभी तुमको वह आनन्द आयेगा जिसका कथन व्याख्या के बीच मे अनेको बार अवक्तव्य अग के रूप में कहा जाने वाला है ।" इस प्रकार ऐसा निश्चय हो जाने पर कि अब यह श्रोता उन सातो भागो या श्रेणियों में स्थित जीवों के भावों को जान गया है तथा इस के कारण इसमे धैर्य व दृढ़ संकल्प जन्म ले चुका है, वह तत्संबंन्धी व्याख्या को प्रारम्भ करता है, जिसे सुनकर श्रोता अवश्य ही अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सफल हो जाता है । अतः किसी भी विषय का ज्ञान करने से पहिले इन सातो भगो को अवश्य जानना चाहिये । यद्यपि उपरोक्त दृष्टात मे सात श्रेणियो में स्थित पृथक पृथक व्यक्तियों का कथन करके समझाने मे आया है, परन्तु सातों भगो का निश्चय किये बिना किसी एक जीव मे भी भिन्न भिन्न समयों में इनमें से ही एक एक करके सातो भग उत्पन्न होने सम्भव है । इन स्थितियो से श्रोता की रक्षा करना ही इस सिद्धान्त का प्रयोजन है । जैसे कभी अस्ति रूप भग को विचार कर सतुष्ट होने लगता है तथा कभी नास्ति रूप भग के ही विचार में खो जाता है, कभी दोनो बातो को छोड़ अधवत् अनुसधान मे ही जुटकर वस्तु की प्राप्ति की इच्छा करता है । कभी क्रम रूप से पृथक पृथक अस्ति नास्ति अंगो का विचार करता हुआ परस्पर मे भासने वाले विरोध की दाह मे जलने लगता है । कभी केवल अस्ति अग के आश्रय पर ही या केवल नास्ति अंग के आश्रय पर ही अनुसंधान करके फल की इच्छा करने लगता है ! और इस प्रकार भिन्न भिन्न समयों में छहों एकान्त श्रेणियो मे घूमरी
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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