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________________ ७ अात्मा व उसके अग १४६ १२ पारिणामिकादि भावो का समन्वय है ? यदि पहिले फोटो के प्रकाश मे बैठ कर पुस्तक पढना चाहे तो भी वैसे ही पढी जायेगी । और अन्त वाले फोटो के प्रकाश मे पढे तब भी वैसी ही पढ़ी जायेगी । यह बात अवश्य है कि पहिले फोटो से प्रकाश बहुत कम आ रहा है क्योकि वहा काला भाग अधिक है, और अन्त के फोटो से प्रकाश पूरा आ रहा है क्यों कि यहा काला भाग बिल्कुल नहीं है, पर प्रश्न तो यह है कि पढते समय क्या दोनों मे पृथक पृथक प्रकार के अक्षर दिखाई देगे ? दूसरे प्रकार से भी यह प्रकाश सामान्य देखा जा सकता है। यदि फिल्म को मशीन पर चढा कर मशीन बहुत अधिक तेजी से चला दे, तो पर्दे पर चित्र नही आयेगे, केवल एक धुन्धला सा स्थिर प्रकाश आकर रह जायेगा, जो आदि से अन्तपर्यन्त जब तक मशीन चलती रहेगी जू का तू बना रहेगा। फिल्म मे से आने वाला यह प्रकाश सामान्य मेरी सर्व पर्यायो मे स्थिर रहने वाला चैतन्य सामान्य है । पहिली निगोद अवस्था मे भी वैसा व वही था और अन्त की सिद्ध अवस्था मे भी वैसा व वही है । इस मे कोई अन्तर पडा नही । यह भगः पारिणामिक भाव है । दूसरे प्रकार से भी सारी पर्यायो को मिला जुलाकर एक मेक कर डाले जो धुधला सा प्रकाश मात्र दिखाई देगा वह पारिण मिक भाव है । भले धुन्धला हो कि स्पष्ट पर है तो प्रकाश ही । यह प्रकाश पना पारिणामिक भाव है, धुन्धला पना नही । इस कार अखण्ड वस्तु मे पारिणामिक भाव पढाया गया। अब इसी फिल्म मे औदयिक आदि भाव देखिये । यह जो न० १ से न० २४ तक के भूत कालीन फोटो दिखाई दे रहे है वे सब मेरे औदयिक भाव का प्रदर्शन कर रहे है । नं० २५ मे मुनि के रूप वाला फोटो मेरे क्षायोपशमिक भाव को दर्शा रहा है । नं २६ मे अर्ह त रूप वाला फोटो क्षायिक व औदयिक दोनो भावों को दर्शा रहा है-शरीर
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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