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________________ ७ आत्मा व उसके अग १४३ द्रव्य मे भी गुण मे तो ज्ञान की मति, श्रुति आदि, चारित्र की राग + वीतरागतादि, श्रद्धा की सभ्यक् मिथ्या श्रद्धादि, वेदना की शांति अशांति आदि, ये पर्याय हैं। और द्रव्य में उपरोक्त सर्व भेद पर्याय है । ११. श्रात्माकी द्रव्य पर्यायों का परिचय * T पर्याय क्षणिक भाव को कहते है । क्षण भी बड़ा व छोटा हो सकता है | बड़ा तो इतना कि कल्पों लम्बा और छोटा इतना कि एक सैकैन्ड का भी असंख्यातवा भाग । अतः यहां क्षणिक भाव या भेद का अर्थ यह न समझना, कि इस छोटे क्षण वाली अवस्था को ही क्षणिक अवस्था या पर्याय कहते है। त्रिकाली की अपेक्षा सर्व ही भेद उस की क्षणिक अवस्थायें है क्योंकि वे कभी अवश्य उत्पन्न होती है और कभी अवश्य विनश जाती है । इन मे कोई अधिक काल तक स्थित रह कर विनशती है और कोई उस छोटे क्षण मात्र के लिये रह कर विनश है । पर क्योंकि विनश जाती है, इस लिये कहा जायगा सबको पर्याय | T और इस प्रकार मुक्त जीव भले न विनशे पर उत्पन्न अवश्य हुआ है । इसलिये यह त्रिकाली जीव की एक सादि अनन्त पर्याय है । इस का काल जीव सामान्य के अनादी अनत काल की अपेक्षा बहुत छोटा है । ससारी जीव भी इसी प्रकार भले कभी उत्पन्न न हुआ हो पर कदाचित विनश कर मुक्त अवश्य हो सकता है, इसलिये यह त्रिकाली जीव की एक अनादि सान्त पर्याय है । इसका काल भी जीव समान्य के अनादि अनन्त काल की अपेक्षा बहुत छोटा है । पर फिर भी अपने अपने उत्तर भेदो की अपेक्षा इन का काल बहुत अधिक लम्बा है | त्रस जीव उत्पन्न होते तथा मरते रहते हुए भी धारा प्रवाही रूप से पुनः पुन. त्रस ही होते रहे, बीच मे कभी स्थावर न हो पाये तो वह काल त्रस जीव का काल कहा जाता है । पर ससारी सामान्य की अपेक्षा तो वह बहुत छोटा है स्थावर जीव भी त्रस वत बराबर मरता और जन्म लेता, यदि धारा रूप से पुन: पुन: स्थावर ही होता
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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