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________________ ६. द्रव्य सामान्य . १०६ ७. द्रव्य व अगो सम्बन्धी समन्वय काल- की । नय प्रमाण ज्ञान का अग है वस्तु का नहीं, अत, यहा ज्ञान पर से वस्तु को पढना है, वस्तु पर से नही । जो वस्तु को ही पढने जायेगे तो वहा तो एक समय की पर्याय ही मिलेगी, तीनों कालों की पर्यायों का अवस्थान वहा असम्भव है। लोक मे ऐक ऐसा मत है कि वस्तु मे जितनी पर्याय हो चुकी है वे भी वस्तु मे अभी तक बैठी हुई है, और जितनी होने वाली है वे भी सब इसमे पहिले ही से विद्यमान है । मानों वस्तु त्रिकाली पर्यायो का कोष है। एक एक करके वे पर्याय बाहर आती रहती है और पुन: उसमे प्रवेश करती रहती है । दृष्टान्त के रूप मे उनका कहना है, कि शब्द आकाश की पर्याय है, और जितने भी शब्द आज तक रामायण' या महाभारत काल में उत्पन्न हुये है या उससे पहिले हो चुके है या आगे होने वाले है, वे सब आकाश में विद्यमान है वैज्ञानिक किसी यत्र विशेष के द्वारा उनमे से जो चाहे वर्तमान मे सुन सकता है । सो भाई ! ऐसा नहीं है । ज्ञान मे उन शब्दों का भान विद्यमान रह सकना सम्भव है, पर आकाश मे नही, न ही वैज्ञानिक कोई ऐसा यत्र बना सकता है कि रामायण काल की आवाजे वर्तमान मे सुन सके । रेडियो मे सुने जाने वाले शब्द तो वर्तमान समय मे प्रगट हो रहे है, वही है, भूत भविष्यत काल वाले नहीं। इसलिये रेडियो पर से उस मत की पुष्टि की जाना सम्भव नही । ४ प्रश्नः- ज्ञान मे उन त्रिकाली पर्यायों को कैसे देखा जा सकता है ? - उत्तर -- आप अपने सारे जीवन की एक फिल्म तैय्यार कीजिये जैसी कि सिनेमा की फिल्म होती है । इसमे बचपन का फोटो स्पष्ट है, स्कूल के जीवन का फोटो स्पष्ट है, पिकनिक पर गये थे वह फोटो भी स्पष्ट है, आपके विवाह का फोटो स्पष्ट है,
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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