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________________ ६. द्रव्य सामान्य ४. वस्तु स्वचतुष्टय की दोनों ही पर्याये अशुद्ध है । मुक्त जीव व परमाणु की सर्व पर्याय शुद्ध और संसारी जीव व स्थूल स्कन्धो या दृष्ट जड़ पदार्थो की सर्व पर्याय अशुद्ध है, क्योकि वे अनेक द्रव्यो के सयोग से उत्पन्न हुई है । पह इनका सक्षिप्त परिचय है, विस्तार तो आगम से ही जाना जा सकता है । ΣΕ गुण व पर्याय रूप नित्य व अनित्य अंगों का अधिष्ठान वह ४. वस्तु के द्रव्य प्रदेशात्मक होना चाहिये अर्थात किसी न किसी स्वचतुष्टय आकृति या संस्थान वाला होना चाहिये, यह बात पहिले वाले प्रकरण में बताई गई है । इसी पर से वस्तु मे अन्य प्रकार से भी चोर अग पढ़ने मे आते है । गुण व पर्यायों को धारण करने वाली वस्तु स्वय एक द्रव्य है । उस द्रव्य का आकार या संस्थान उसका क्षेत्र है, क्योकि आकार क्षेत्रात्मक परिमाण वाला होता है । परिणमन शील पर्याये उस द्रव्य का काल है, क्योकि पर्यायों की स्थिति काल परिमाण वाली होती है । उसके गुण द्रव्य के स्वभाव कहलाते है क्योकि वे भावात्मक होते है । द्रव्य के क्षेत्र, काल व भाव ये वस्तु के स्वचतुष्टय कहलाते है । सामान्य या विशेष कोई भी पदार्थ इस चतुष्टय को तीन काल मे उल्लघन करके अपनी सत्ता सुरक्षित नही रख सकता । जैसे कि द्रव्य सामान्य स्वय द्रव्य है, उसका आकार उसका क्षेत्र है, अपनी त्रिकाल गत पर्यायों मे 'अनुस्यूत रहने के कारण अनाद्यनन्त या त्रिकाल स्थायी उसका काल है । अनेक गुणो में अनुस्यूत एक अखंड स्वभाव उसका भाव है इसी प्रकार गुण द्रव्य से पृथक् अपनी सत्ता न रखने के कारण स्वय द्रव्य है, द्रव्य मे सर्वत्र व्याप कर रहने के कारण द्रव्य का आकार या क्षेत्र ही उसका आकार या क्षेत्र है, अपनी त्रिकाल वर्ती पयायों में अनुस्पूत रहने के कारण अनाद्यनन्त या त्रिकाल स्थायी उसका काल है । उसकी अपनी पूर्ण शक्ति ही उसका भाव है । इसी प्रकार पर्याय - भी 1 1
SR No.009942
Book TitleNay Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherPremkumari Smarak Jain Granthmala
Publication Year1972
Total Pages806
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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