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________________ मेरी जीवन गाथा चैत्र सुदी १२ सं० २००६ को सहारनपुर आ गये। टपरी म्टेशनसे ही मनुष्योंका संपर्क होने लगा और सहारनपुरके वाहर तो हजारों मनुप्योंका जमाव हो गया। बड़ी सजधजके साथ जुलूस निकाला । श्री हुलासरायजी रईसके गृहके पास जो कन्यो विद्यालयका मकान था वहीं पर जुलूस समाप्त हुआ। हजारों नरनारियोंको समुदाय होनेसे इतना शब्दमय कोलाहल था कि लाउडस्पीकरके द्वारा भी कार्य सिद्धि नहीं हो सकी। एक भी कायें नहीं हुआ, केवल श्री जिनमन्दिरके दर्शन कर सके। चैत्र सुदी १३ भगवान महावीर स्वामीका जन्म दिवस है। इस दिन समस्त भारतवर्ष में जैन वड़ा उत्सव करते हैं। यहाँ भी उत्सवकी बड़ी बड़ी तैयारियाँ थीं। प्रात काल ८ वजेसे ६ बजे तक जैन कालेजसे प्रवचन हुआ। बहुत भीड़ थी, भीड़के अनुकूल ही प्रवचन रहा। प्रवचनसे जनता प्रसन्न भर हो जाती है पर जो वात होनी चाहिए वह नहीं होती। जनतामे वहुत ही आनन्द समाया हुआ था । वनारससे श्री सम्पूर्णानन्दजी आये थे! रात्रिको आपका भापण होगा। लोगोंने उत्सुकताके साथ दिन व्यतीत किया परन्तु जव रात्रिका समय आया तव अखण्ड पानी बरसा इससे सभा नहीं हो सकी और श्री सम्पूर्णानन्दजीके भाषण श्रवणसे जनता वञ्चित रह गई। अगले दिन जेन वागमे प्रवचन हुआ, मनुष्योंकी भीड़ बहुत थी तदपेक्षा स्त्री समाज बहुत था। समुदाय इतना अधिक था कि प्रवचनका आनन्द मिलना कठिन है। १ घण्टा जिस किसी तरह पूर्णकर छुट्टी मिली। यहाँ स्वाध्यायके रसिक बहुत हैं जिनमे श्री ब्र० रतनचन्द्रजी मुख्त्यार और श्री नेमिचन्द्रजी वकील प्रमुख हैं। ये दोनों भाई अात्महितमे जागरूक तथा श्रागम ग्रन्थोंके परिजानसे युक्त हैं। मग्न भाषाका अध्ययन न होने पर भी जिनागमका विशद नान प्राप्त
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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