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________________ मेरठ बहुत चेष्टा की परन्तु किसीने नहीं पिया। यहाँसे ३ मील चलकर खरखोंदा आ गये। यहाँ पर एक तगा ब्राह्मणके घर पर ठहर गये जो बहुत ही सज्जन था । इनके वावा तुलसीराम बहुत प्रसिद्ध पुरुष थे । निरन्तर दानमे प्रवृत्ति रखते थे। यहाँ तक दयालु थे कि निज उपयोगके पदार्थ भी परजनहिताय दे देते थे। ऐसे पुरुष बहुत कम होते हैं। यहाँ पर मेरठसे एक चौका आया था। उसीमे भोजन किया। यह ग्राम ६००० मनुष्योंकी वस्ती है। यहाँ पर अनिवार्य शिक्षा है । संस्कृतशाला तथा हाईस्कूल है । सव प्रकारकी सुविधा है। व्यापारकी मण्डी है। यहाँसे ११३ बजे चल दिये और १ मील चलकर मार्गमे सामायिक की। नगरके कोलाहलसे दूर निर्जन स्थान पर सामायिक करनेसे चित्तमे बहुत शान्ति आई। तदनन्तर चलकर एक बागमें ठहर गये। माघ सुदी पूर्णिमाको प्रातः तीन मील चलकर मेरठसे इसी ओर २ मील दूरी पर १ बाग था उसमें ठहर गये । देहलीसे श्री राजकृष्णके भाई आये, उनके यहाँ भोजन हुआ। वहाँ १३ वजतेबजते मेरठसे बहुत जनसंख्या आकर एकत्र हो गई और गाजेबाजेके साथ मेरठ ले गई। लोगाने महान् उत्साह प्रकट किया। अन्तमें श्री जैन बोटिंगमें पहुँच गये और यहीं ठहर गये । यहाँ पर १ मन्दिर बहुत सुन्दर है, स्वच्छ हैं। १ भवन शास्त्रप्रवचनका है जिसमें २०० मनुष्य तथा १०० महिलाएँ आनन्दसे शास्त्र श्रवण कर सकते हैं। दूसरे दिन प्रात काल प्रवचन हुआ। श्री वणी मनोहरलालजीने प्रवचन किया। आपकी प्रवचनशैली गम्भीर है, आप सस्कृतके अच्छे विद्वान् हैं, कवि भी हैं, भजनोंकी अच्छी रचना की है, गान विद्यामें भी आपकी गति है, हारमोनियम अच्छा बजाते हैं, सौम्यमूर्ति हैं। आपने सहारनपुरमे गुरुकुल खोला है उसके अर्थ कुछ संकेत किया तो २००००) वीस हजार
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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