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________________ अपनी बात पिछले वर्ष श्री पं० फूलचन्द्र जी शास्त्री वी जयन्ती पर ईसरी गये थे। भाई नरेन्द्रकुमार जी, जो अपनेको विद्यार्थी लिखते हैं पर अत्र विद्यार्थी नहीं एम० ए० और साहित्याचार्य हैं, भी गये थे। वहाँ से लौटने पर पण्डितजीने पूज्य वर्णीजीकी पुरानी डायरियों तथा लेख अाटिके रजिस्टरोका एक बडा वत्ता नरेन्द्रकुमारजीके हाथ हमारे पास भिजाया और साथ ही उनका डाकसे एक पत्र मिला जिसमे लिखा था कि मै ईसरीसे लौट रहा हूँ। जीवनगाथा प्रथम भागके आगेकी गाथा इन डायरियो मे पूज्य वर्णाजीने लिखी है। उसे आप शीघ्र ही व्यवस्थित कर दे । नरेन्द्रकुमारजी स्वयं तो सागर नही आये पर उनका भी उक्त सामग्री के साथ इसी आशयका एक पत्र मिला। इनसे इस पुण्य कार्यके लिये प्रेरणा पा मुझे बहुत हर्ष हुआ। पर प्रातः ५ वजेसे लेकर रात्रिके १० बजे तक मेरी जो दिनचर्या है उसमें कुछ लिखनेके लिये समय निकालना कठिन ही था। मैने बनारस लिखा कि 'यह काम ग्रीष्मावकाशमे हो पावेगा।' ग्रीष्मावकाशके लिये पर्याप्त देरी थी और पूज्य बाबाजीके स्वास्थ्यके जो समाचार आ रहे थे उनसे प्रेरणा यही मिलती थी कि यह काम जल्दीसे जल्दी पूर्ण किया जाय । अन्तमे जब कुछ उपाय न दिखा तब विद्यालयसे मैंने प्रतिदिन दो घटेकी सुविधा मागी और विद्यालयके अधिकारियोंने मुझे सुविधा दे दी। फलस्वरूप मेरी शक्ति इस काममे लग गई और ३ माहम यह महान कार्य पूर्ण हो गया । पूर्ण होते ही मे पूज्य बाबाजीके पास ईसरी गया और उन्हें आद्योपान्त सब सामग्री श्रवण करा दी। आवश्यक हेर-फेरके बाद पाण्डु लिपिको अन्तिम रूप मिल गया और उसे प्रकाशनके लिये
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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