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________________ मेरठकी ओर जो नाना प्रकारकी अभिलाषाएँ होती हैं वही दुःख है। मैंने कहाजब यह निश्चय हो गया कि अभिलाषाएँ ही दुःख है तब इन्हे त्यागना ही दु.खनिवृत्तिका उपाय है। किसीसे पूछनेकी आवश्यकता. नही। इतना ही मामिक तत्त्ववेत्ता कहेगे । दुःख निवृत्तिका उपाय जब यही है तव दुःखके मूल कारणोंसे अपनेको सुरक्षित रखना मनुष्यका कर्तव्य अनायास सिद्ध है। आजकी कथा तो प्रत्यक्ष ही है । संसारमे जिसकी आवश्यकताएँ जितनी अधिक होंगी वह उतना ही अधिक दुःखका पात्र होगा। जितनी कम अभिलाषाएं होगी वह उतना ही कम दुःखका पात्र होगा इससे अधिक उपदेश कल्याणमार्गका है नहीं। दुःखका मूल कारण परमे निजकी कल्पना है। जिसने इस कल्पनाकी उत्पत्तिको रोका उसने संसारका बीज ही उच्छेद कर डाला। देव गुरु और आगमकी उपासनाका भी यही सार है। यदि मोह नष्ट हो गया तो विषाक्त दन्तके विना सर्प जिस प्रकार फण पटकता रहे पर कुछ अहित करनेको समर्थ नहीं उसी प्रकार अन्य विभाव काम करता रहे पर आत्माका कुछ पदार्थ विगाड़ नहीं सकता इसे हम और आप जानते हैं । यदि विशेष जाननेकी इच्छा हो तो विशिष्ट विद्वानोंके पास जाओ । मेरा उत्तर सुन उसका चित्त गद्गद हो गया।। __ यहाँ रात्रिको ठण्डका बहुत प्रकोप हुआ परन्तु जब निरुपाय कोई उपद्रव आ जाता है तब एक सन्तोष इतना प्रवल उपाय है किउससे वह उपद्रव विना किसी उपायके स्वयमेव शान्त हो जाता है। यहाँसे प्रातःकाल चले । लगभग ६ मील चले होंगे कि एक वैष्णव धर्मको माननेवाली महिला आई और उसने बहुतसे फल समर्पण किये । बहुत ही आदरसे उसने कहा कि हमारा भारतवर्ष-देश आज जो दुर्दशापन्न हो रहा है उसका मूल कारण साधु लोगोंका अभाव है। प्रथम तो साधुवर्ग ही यथार्थ नहीं और जो कुछ है वह
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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