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________________ भारहीनो वभूव श्रीलमन्त नद्रस्वामीने पार्श्वनाथ भगवान्का जो स्तोत्र लिखा है उसे पढ़कर चित्तमे शान्ति आई। यहीं पर मध्याह्नकी सामायिककर दिनके ३३ वजे मधुवन वापिस आ गये और श्रीपन्नालालजी चौधरी के यहाँ आहार किया। भक्तिका प्राबल्य देखो कि स्त्रियां तथा आठ आठ वर्षके बच्चे भी १८ मीलका पहाड़ी मार्ग चलकर भी खेदका अनुभव नहीं करते। जो स्त्रियाँ अन्यत्र २ मील चलनेमें भी कष्टका अनुभव करती हैं वे यहाँ १८ मीलका लम्बा मार्ग एक साथ चलकर भी कष्टका अनुभव नहीं करती। यथार्थ बात यह है कि उस समय उनका उपयोग दूसरी ही ओर रहता है । तीन चार दिन मधुवन में रहे । नांचे तेरहपन्थी कोठीमे श्रीभगवान् पाश्वनाथकी विशाल प्रतिमा विराजमान है । तथा श्रीसोहनलालजी कलकत्तावालोंके मन्दिरमें श्रीचन्द्रप्रभ भगवान्की भी मनोज्ञ प्रतिमा है। यहाँसे चलकर पुनः ईसरी वापिस आ गये । यहाँ कलकत्तानिवासी श्री सेठ शान्तिप्रसादजी तथा वाबू नन्दलालजी, सेठ वैजनाथजी सरावगी, पटनानिवासी वद्रीप्रसादजी सरावगी, खरखरी निवासी श्री बाबू विमलप्रसादजी, बाबू शिखरचन्द्रजी, वरनावावाले नत्थूमल्लजी. गिरीडीह निवासी श्री बालचन्द्रजी मोदी, राधाकृष्ण कालूरामजी, रामचन्द्रजी सेठी, सागरमल्लजी पाण्डया, गिरनारीलालजी सरावगी, कोडरमा निवासी श्री जगन्नाथजी पाण्डया, गौरीलालजी, जीतमलजी, भंवरीलालजी पाण्डया, राँचीनिवासी श्री रायवहादुर हरषचन्द्रजी, लालचन्द्रजी सेठी, हजारीबागनिवासी श्री कन्हैयालाल मिश्रीलालजी तथा गयानिवासी श्री छोगालालजी, सोनूलालजी तथा चम्पालालजी सेठी श्रादि महानुभाव समय-समय पर पधार कर सब व्यवस्था बनाये रहते हैं ।
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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