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________________ १४२ मेरी जीवन गाथा द्वितीय वैशाख कृष्णा २ को सिंहपुरीसे ५ मील चलकर मैंदागिनमे आ गये। यहीं पर भोजन हुआ। रात्रि भी यहीं व्यतीत की। अगले दिन प्रातःकाल ५। बजे चलकर शामीलकी दूरी पर एक खत्रियके वागमें ठहर गये । स्थान सुरम्य था। बहुत आनन्दसे समय गया । श्री गणेशदासजीके सुपुत्र श्री गुल्लूबाबू तथा मौजीलालजीका चौका आया था। इन्हींके यहाँ भोजन हुआ। सायंकाल २ मील चलकर एक बागमें ठहर गये। वृद्धावस्थाके कारण अधिक चला नहीं जाता था इसलिये थोड़ा ही चलते थे और यह निश्चय कर लिया था कि जितनी शक्ति होगी तदनुकूल । गमन करेंगे परन्तु गमन श्री पार्श्वप्रभुके सम्मुख ही करेंगे। पार्श्वप्रभुकी ओर प्रातःकाल बागसे ४ मील चल कर मोगलसरायकी धर्मशालामें ठहर गये । धर्मशालामे सब प्रकारके मनुष्य आते हैं। यदि वहाँ कोई धर्मप्रचार करना चाहे तो अनायास कर सकता है । सायंकाल ३ मील चलकर १ वावाजी की कुटीमें ठहर गये। अन्य साधु जिस प्रकार निरीह हो नगरके बाहर शान्तिसे जीवन बिताते हैं उस प्रकार हमारे साधु नहीं। अब इन्हें बिना परिकरके एक दिन भी चैन नहीं पड़ता। दूसरे दिन प्रातःकाल कुटीसे ४ मील चले तो चुल्लक महोहरलाल जी वर्णी मिल गये। प्रसन्नता हुई। यहाँसे २ मील चलकर चंदौलीके शिवालयके पास धर्मशालामे ठहर गये । यहाँ पर भोजन हुआ। दुपहरी शान्तभावोसे बीती किन्तु जहाँ पर अधिक समागम होता है वहाँ सिवाय अप्रयोजनीभूत कथाओंके कुछ नहीं
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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