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________________ ३६८ मेरी जीवन गाथा अर्थात् गृध्र तया शृगालोंसे भरे और समस्त प्राणियोंको भय उत्पन्न करनेवाले श्मशानमें ठहरना व्यर्थ है । मृत्युको प्राप्त हुआ कोई भी प्राणी यहाँ आकर जीवित नहीं हुआ। चाहे प्रिय हो चाहे अप्रिय हो, प्राणियोंकी रीति ही ऐसी है। गृध्रके वचनोंका प्रभाव मृत बालकके वन्धुजनों पर न पड़ जाय इस भावनासे गोमायु कहता है श्रादित्योऽयं स्थितो मूढाः स्नेह फुरुत साम्प्रतम् । बहुविन्नो मुहूतोऽयं जीवेदपि कदाचन ॥ अमु कनकवर्णाभ बालमप्राप्तयौवनम् । गृध्रवाक्यात्कथं मूढास्त्यजध्वमविशकित्ताः ।। अर्थात् अरे मूर्ख । अभी यह सूर्य विद्यमान है। तुम लोग बालकसे स्नेह करो। यह मुहूर्त अनेक विघ्नोंसे भरा है। कदाचित तुम्हारा बालक जीवित हो जाय । जो स्वर्ण के समान कान्तिमान है तथा जिसका योवन नहीं आ पाया ऐसे बालकको गृधक कहनंस आप लोग निःशङ्क हो क्यों छोड़ रहे हो ? . प्रकरण लम्बा है पर उसका अभिप्राय देखिये कि मनुष्य अपने-अपने अभिप्रायके अनुसार पदार्थक यथार्थ स्वरुपको पमा छिन्न-भिन्न करते हैं। इस छिन्न भिन्न करनेका कारण मनुष्यो हृदयमे विद्यमान प्रमादयोग या क्पायपरिगनिही । पर विजय होजाय तो फिर मुखसे एक भी अनन्य शब्द न निक्ले। मनुष्यकी शोभा या प्रामाणिकता उससे यमनाने । वचनोंकी प्रामाणिकता नष्ट नई किसय गुर नष्ट असत्यवादी वचन ज्यापुनपरे यननके समान प्रामाटिक होते हैं। उनपर कोट ध्यान नहीं देता पर सत्यवादी मात वचन सुनने के लिए लोग पामों पचम मा ।
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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