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________________ पर्व प्रवचनावली ३६१ योग्य हो जाता था लेता था एक समय था कि जब लड़का कार्य सम्भालने तब वृद्ध पिता सम्पत्तिसे मोह छोड़ दीक्षा ले वृद्ध पिता और उनके भी पिता हों तो वह भी सम्पत्ति से छोडना चाहता, फिर लड़का तो लड़का ही है । वह मोह नहीं छोड़ रहा है इसमे आश्चर्य ही क्या है ? कपड़ा बुनने - चाला कुविन्द कपड़ा बुनते अन्तिम छोरा छोड़ देता है पर हम उस अन्तिम छीरे तक बुनना चाहते हैं । इस तृष्णाका भी कभी अन्त होगा ? पर आज मोह नहीं सम्पत्ति से लोभ मीठा शत्रु है । यह दशम गुणस्थान तक मनुष्यका पिण्ड नहीं छोड़ता । अन्य कषाय यद्यपि उसके पहले ही नष्ट हो जाती हैं पर लोभकषाय सबसे अन्त तक चलती जाती है। लोभके निमित्तसे आत्मामें अपवित्रता आती है । लोभसे ही समस्त पापों इस प्राणीकी प्रवृत्ति होती है । आचार्योंने लोभको ही पापका बाप बतलाया है । एकवार एक आदमी काशी पढ़ने गया । उस समय छोटी अवस्थामें विवाह हो जाता था इसलिये उसका भी विवाह हो गया था । वह स्त्रीको घर छोड़ गया । ५-६ वर्ष काशी में पढ़नेके बाद जब घर लौटा तब गाँवके लोगोंने उसका बड़ा सत्कार किया । जव वह अपनी स्त्रीके पास पहुॅचा तव खीने कहा कि आप मुझे अकेली छोड़ काशी गये थे । अब आप मेरे एक प्रश्नका उत्तर यदि दे सकें तो मैं अपने घर के भीतर पैर रखने दूंगी, अन्यथा नहीं । उसने कहा कि अपना प्रश्न कहो । बीने कहा कि बताओ 'पापका बाप क्या है ?' अद्भुत प्रश्न सुनकर वह बहुत घबड़ाया । रामायण महाभारत भागवत आदि सब ग्रन्थ देख ढाले पर कहीं पापका वाप नहीं मिला । उसे चुप देख ने कहा कि अब पुनः काशी जाइये और यह पढ़कर आइये । काशी बहुत दूर थी इसलिये उसने सोचा कि यदि कोई यहीं पापका
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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