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________________ ३३० मेरी जीवन गाथा पधारे । निःस्पृह व्यक्ति हैं, तत्त्वज्ञानकी अभिलापा रखते हैं, संस्कृत जानते हैं, निरन्तर ज्ञानमय उपयोग रखते हैं । आपके दर्शन कर मेरे मनमे यह भाव उत्पन्न हुआ कि इस कलिकालमे दिगम्बरकी रक्षा करना सामान्य मनुष्यका काम नहीं । धन्य है आपके स्वार्थको जो इस विपम कालमे साक्षात् मोक्षमार्गकी जननी दिगम्बर मुद्राका निरतिचार निर्वाह कर रहे हैं। आपकी शान्तिमुद्रा देखकर अन्य जन्तु भी शान्त भावको धारणकर मोक्षमार्ग के पात्र हो सकते हैं । सागरमे बालचन्द्र मलैया श्रद्धालु जीव है । सम्पन्न होनेपर भी कोई प्रकारका व्यसन आपको नहीं । श्रावकके पद कर्ममे निरन्तर आपकी प्रवृत्ति रहती हैं । आपने सागरसे २ मील दूर दक्षिण तिलीग्राममे एक विस्तृत तथा सुन्दर भवन बनवाया है। पूजाके लिये चैत्यालय भी निर्माण कराया है । एकान्त प्रिय होने अि कांश आप वहीं पर रहते हैं । आपका आग्रह कुछ दिन के लिये अपने वागमे ले जानेका हुँआ । मैने स्वीकृत कर लिया अतः वैशास शुक्ला १३ को श्री क्षुल्लक क्षेमसागरजी के साथ वहाँ गया । बहुत ही रन्य स्थान है । सर्व तरह के सुभीते हैं । यदि कोई यहाँ तत्त्व विचार करना चाहे तो कोई उपद्रव नहीं । ३ दिन यहाँ रहा । पण्डित पन्नालालजी साथ रहते थे । शान्तिसे समय व्यतीत हुआ। आकर दिनमे गरमी अधिक पडती थी अतः भोजनोपरान्त ५ बजे श्री भगवानदासजी की हवेली के नीचे भागमें रहता था । यहाँ आतापनहीं पहुँच पाता था इसलिये शान्ति रहती थी । ५ बजे शान्ति निकेतन -- उदासीनाश्रममें चला जाता । सागर में अनेक मन्दिर है तथा विद्यालय और महिला प्रकार २ संस्थाएं हैं। की व्यवस्थापक समितियां डुडी जुटी हैं इसलिये अपनी अपनी ओर लोगोंका विचार रहा है।
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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