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________________ द्रोणगिरि और रेशन्दीगिरि ३१३ है। यथाशक्ति बालकोंको अध्ययन कराता है। शिक्षक बहुत ही योग्य होना चाहिये परतु वर्तमानमें शिक्षा बहुत मंहगी होगई है। १००) के बिना उत्तम अध्यापक नहीं मिलता। लोग यथाशक्ति चन्दा नहीं देते । जिनके पास पुष्कल द्रव्य है वे विवेकसे. व्यय नहीं करते और जिनके पास नहीं है वे बातोंके सिवाय और कर ही क्या सकते हैं ? ऐसे लोग प्रायः यह कहते देखे जाते हैं कि यदि हमारे पास पुष्कल धन होता तो हम ऐसा करते वैसा करते परन्तु धन पानेपर उनके परिणाम भी धनिकोंके ही समान हो जाते हैं। इसीसे किसी कविने बहुत ही समयोपयोगी दोहा कहा है कहा करूँ धन है नहीं होता तो किस काम । जिनके है तिन सम कहा होते नहि परिणाम ॥ पौप कृष्णा १४ सं० २००८ को दोपहरके बाद एक अत्यन्त प्राचीन खगासन प्रतिमाका, जो कि काले पत्थर की बहुत ही मनोज्ञ है, अभिषेक हुआ। जनता अच्छी एकत्रित हुई। कलशाभिषेक, फूलमाल तथा ज्ञानमालमें १००) के करीब आय हो गई। तदनन्तर व्याख्यान हुए। हमको भी व्याख्यान देनेके लिये कहा गया । व्याख्यान देना कुछ कठिन नहीं परन्तु तारतम्यसे कहना कठिन है। परमार्थसे हमको व्याख्यान देना आता नहीं और न उसके लिये हम परिश्रम ही करते हैं । इसका कारण प्रथम तो हमने किसी शास्त्रका साङ्गोपाङ्ग अभ्यास किया नहीं और न ही व्याख्यान कलाका अभ्यास किया अतः यदि कोई महाशय हमको किसी विषय पर व्याख्यान देनेका आग्रह करे तो हम खड़े तो हो जावेगे परन्तु निर्वाह नहीं कर सकेंगे। 'कहींकी ईंट कहीं का रोरा भानुमतीने कुरमा जोरा' वाली कहावतके अनुसार कुछ कह कर समय पूरा कर देंगे। अस्तु, इसका हमको कुछ भी हर्ष-विषाद नहीं
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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