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________________ २६६ मेरी नीवन गाथा जिसका भाव यह है-चन्द्रमाका उदय होने पर कमल बन्द हो जाता है। क्यों हो जाता है ? इसकी कल्पना एक कविने की हैं । लोग कमलको लक्ष्मीका घर कहते हैं। इसी प्रसिद्धिसे चन्द्रमाने • अपना कर अर्थात् हाथ कमलके पास प्रसारित किया कि इसके पाससे कुछ लक्ष्मी मुझे भी मिल जायगी पर कमलने देखा कि मेरे पास लक्ष्मी तो है नहीं। लोग मुझे व्यर्थ ही लक्ष्मीका निवास कहते हैं। मैं द्विजरान-चन्द्रमा को क्या दे दू""इस संकोचके कारण ही मानों कमल चन्द्रोदय होने पर वन्द हो जाता है। सो यह तो कवियोंकी वात रही पर जब मैं अपनी ओर देखता हूँ तो यही अवस्था अपनी पाता हूँ। आप लोग बढ़ा बढ़ा कर गुणगान करते हैं पर मेरेमें वह गुण अंशसान भी नहीं अतः नीचा मुख कर बैठ जाता हूँ। संसार की बात क्या कहूं ? वहाँ तो लोग पत्थरको देवता बना कर उससे अपना कल्याण कर लेते हैं फिर मैं तो सचेतन प्राणी हूँ। यह निश्चित है कि आपका कल्याण हमारे क्या साक्षात् जिनेन्द्रदेवके गुणगान करनेसे भी नहीं होगा। कल्याणका मार्ग तो आत्मामेसे विकार परिणति को दूर कर देना है। जब तक इस विकार परिणतिको श्राप दूर न करेंगे तब तक कल्याणकी वात दूर है। स्वर्गादिकका वैभव भले ही मिल जावे पर इससे कल्याण नहीं। कल्याण तो जन्म-मरणके संकटसे दूर हो जाने पर ही हो सकता है। जन्म-मरणका कारण मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, और मिथ्याचारित्र हैं। इनसे अपने आपकी रक्षा करो। जिस समय इनसे आत्मा निवृत्त हो जायगी उस समय अन्यके गुणगान करनेकी आवश्यकता नहीं रहेगी। अस्तु, __अब तक कालेज खोलनेका दृढ़ निश्चय हो गया था और उसकी इस उत्सवमें घोषणा कर दी गई। कालेजका नाम 'वणी इन्टर कालेज' रक्खा गया। उत्सवमें आगत जनताने भी यथायोग्य
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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