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________________ २८६ विविध विद्वानोंका समागम यदि भोजनमें विलम्ब हो गया तो पति कहता है--बिलम्ब क्यों हुआ ? स्त्री कहती है कि पुत्रका काम करूँ या आपका। पुत्र ज्यों ज्यों वृद्धिको प्राप्त होता है त्यो त्यों पिता ह्रासको प्राप्त होता है। समर्थ होने पर तो पुत्र समस्त सम्पदाका स्वामी वन जाता है । अव आप स्वयं निर्णय कीजिये कि पुत्रने उत्पन्न होते ही आपकी सर्वाधिक प्रेमपात्र स्त्रीके मनमें अन्तर कर दिया, पीछे आपकी समस्त संपत्ति पर स्वामित्व प्राप्त कर लिया तो वह पुत्र कहलाया या शत्रु ? आपकी संपत्तिको कोई छीन ले तो उसे आप मित्र मानेंगे या शत्रु ? परन्तु मोहके नशामें यथार्थ बातकी ओर दृष्टि नहीं जाती है । यह मोह दर्शन, ज्ञान तथा चारित्र इन तीनों गुणोंको विकृत कर देता है इसलिये हमारा प्रयत्न ऐसा होना चाहिये कि जिससे सर्व प्रथम मोहसे पिण्ड' छूट जावे । श्रावण शुक्ला १३ सं० २००८ को व्र० सुमेरुचन्द्रजी भगतका व्याख्यान हुआ। आपने पुद्गलसे भिन्न आत्माको दर्शाया। परमार्थसे सर्व द्रव्य भिन्न भिन्न हैं। कोई द्रव्यके साथ तन्मय नहीं होता। फिर भी जीव और पुद्गल ये दो द्रव्य पृथक पृथक होने पर भी परस्पर इस प्रकार मिल रहे हैं कि जिनसे अखिल विश्व दृष्टिपथ हो रहा है। यह विश्व न तो केवल पुद्गलका कार्य है और न केवल जीवका किन्तु उमय द्रव्य मिल कर यह खेल दिखा रहे हैं। चूना अपने आपमें सफेद पदार्थ है और हल्दी अपने आपमें पीली है परन्तु दोनों मिल कर एक तीसरा लाल रंग उत्पन्न कर देते हैं इसी प्रकार जीव और पुद्गलके सम्बन्धसे यह दृश्यमान जगत् उत्पन्न हुआ है । आज जो मानवीय शरीर अपनेको उपलब्ध है इसकी तुलना देवोंका शरीर भी नहीं कर सकता फिर नारकी और तिर्यञ्च की तो बात ही क्या है ? इस मानव शरीरमें वह योग्यता है कि अन्तर्मुहूर्तमे संसारसे बेड़ा पार करादे पर १६
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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