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________________ विविध विद्वानोंका समागम २८७ अपने घरमे-अपने स्वरूपमे लीन रहूँगा तो बचा रहूँगा, अन्यथा संसारके राग-रंगमें फँस जाऊँगा। जगमें होरी हो रही बाहर निकले कूर । जो घरमें बैठा रहे तो काहे लागे धूर ॥ विविध विद्वानोंका समागम ललितपुरकी समाजका निमन्त्रण पाकर पं० फूलचन्द्रजी बनारससे यहाँ आचुके थे यह 'मैं पहले लिख आया हूं। इनके सिवाय अन्यान्य विद्वानोंका समागम भी यहाँ होता रहा । विद्वानोंने अपने प्रवचनोंके द्वारा यहाँकी समाजको यथाशक्य लाभान्वित किया । श्रावण शुक्ल १ के दिन श्री पं० हीरालालजी शास्त्रीने प्रातःकाल प्रवचन करते हुए सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्रका विशद वर्णन किया। आपने सम्यग्ज्ञानको तराजू और सम्यग्दर्शन तथा सम्यक्चारित्रको तराजूके दो पलड़े बताकर मोक्षमार्गका अच्छा विवेचन किया। आपकी वाचनाशेली उत्तम है। श्रोतागण प्रसन्न हुए। सम्यग्दर्शनका विवेचन करते हुए आपने खास बात यह बताई कि सम्यग्दृष्टि मूल कारण को पकड़ता है और मिथ्यादृष्टि बाह्य कारणोंमे उलझता है। सम्यग्दृष्टिकी प्रवृत्ति सिंहके समान है अर्थात् जिस प्रकार सिंह बन्दूककी ओर न झपट कर मारनेवालेकी ओर झपटता है उसी प्रकार सम्यग्दृष्टि बाह्य कारणोंमे उलझ कर उनसे रागद्वेष नहीं करता किन्तु अन्तरङ्ग कारण जो कर्मोदय है उसकी ओर दृष्टि देता है। मिध्यादृष्टि की
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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