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________________ ललितपुरकी और २७६ सजातीय ब्राह्मणसे रखते हैं। आप हाईस्कूलमे संस्कृत अध्यापक हैं। १२०) मासिक मिलता है। एक संस्कृत पाठशाला प्राइवेट चलाते हैं। उसमें कई हरिजनोंको विशारद मध्यमा तक परीक्षा उत्तीर्ण करा चुके हैं। आपका यह सब काम उच्चवर्णवालोंको अप्रिय प्रतीत होता है। न जाने लोगोंने इतनी संकीर्णता क्यों अपनाई है ? विद्या किसी व्यक्ति विशेषकी नहीं, फिर भी इतनी संकीर्णता क्यों ? यह सव मोहका कार्य है, मोहमे ही यह भाव होता है कि हम ही उच्च कहलावें, चाहे कितना ही नीच कार्य क्यों न करें ? अन्य ऋषियोंने तो यहाँ तक लिख दिया है कि 'स्त्रीशूद्रौ नाधीयेयाताम्' अर्थात् स्त्री और शूद्रको नहीं पढ़ाना चाहिये । यह अन्याय नहीं तो क्या ? न जानें इन मनुष्योंने कितने प्रतिबन्ध लगा रक्खे हैं ? अन्य कथा छोड़ो, यहाँ तक आज्ञा दे डाली कि एकान्तमे अपनी माँसे भी मत बोलो। मा यह उपलक्षण है अतः स्त्रीमात्रका ग्रहण है। वास्तविक बात यह है कि परिणामोंकी मलिनता जैसे जैसे वृद्धिको प्राप्त होती गई वैसे वैसे यह सर्व नियम बनते गये। तालबेहटमें तालाब बहुत सुन्दर है, तालाबके जलसे एक प्रपात पड़ता है जो बहुत ही मनोहर है, एक छोटी पहाड़ी भी पासमे हैं। अपाढ़ शुक्ला ६ सं० २००२ को यहाँसे चल कर बीचमें जमालपुर ठहरते हुए बाँसी आगये। यह बड़ा कसवा है। ३००० के करीव मनुष्य संख्या होगी। यहाँ २ घर गोलालारे जैनोके हैं जिनमे १ घर सम्पन्न है। २ घर विनेकावाल जैनोंके भी हैं । २ मन्दिर विशाल हैं। इस समय ऐसे मन्दिर बनवानेमें लाख रुपयेसे कम नहीं लगेगा। एक मन्दिरकी शिखर जीर्ण है। उसकी मरम्मतके लिये एक जैनी भाईने १००) तथा ५ बोरी सीमेंट दी और भी कई लोगोंने यथाशक्य दिये। २१) सिं० कुन्दनलालजी सागरवालोंने दिये। यह ग्राम किसी समय सम्पन्न रहा होगा । यहाँकी
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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