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________________ २७४ मेरी जीवन गाथा धर्मका निरूपण मुनि करनेमें समर्थ होते हैं विद्वान् अविरति सम्यग्दृष्टि उस पद्धतिसे निरूपण नहीं कर सकते। आजकल सिद्धान्त के ज्ञाता तो वहुत हो गये हैं परन्तु उसपर आचरण नहीं करते। इससे उनके उपदेशका कोई प्रभाव नहीं होता । पदार्थका ज्ञान होना अन्य बात है और उस पदार्थरूप हो जाना अन्य वात है। हम अपनी कथा कहते हैं-जितनी कथा कहते हैं उसका शतांश भी पालन नहीं करते। यही कारण है कि शान्तिके स्वादसे वञ्चित हैं। शान्तिका आना कोई कठिन नहीं । आज शान्ति आ सकती है परन्तु शान्तिके बाधक जो रागादि दोष हैं उनको हम त्यागते नहीं। रागादिकके जो उत्पादक निमित्त हैं सिर्फ उन्हें त्यागते हैं परन्तु उनके त्यागसे रागादिक नहीं जाते। उनका अभाव तो उनकी उपेक्षासे ही हो सकता है। त्रयोदशीको प्रात काल चलनेका विचार था परन्तु मूसलाधार वर्षा होनेसे चल नहीं सके । ११ बजेतक वर्षा शान्त नहीं हुई । ऐसा दिखने लगा कि अब ललितपुर पहुंचनेमे विघ्न आ रहा है परन्तु मध्याह्नके बाद आकाश स्वच्छ होगया जिससे १ वजे झाँसीसे निकल घर ४ वजे विजौली पहुंच गये । स्थान रम्य था । एक स्कूलमे ठहर गये । यह स्थान सदर (झाँसी) से ६ मील दूर है। बीचमें ४ मीलपर एक डेयरीफार्म दिखा। महिपी और गायोंकी स्वच्छता देख चित्त प्रसन्नतासे भर गया। दूसरे दिन विजौलीसे २ मील चल कर १ उपवनमें निवास किया। शौचादिसे निवृत्त हो पाठ किया तदनन्तर सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थका प्रवचन किया। उपवनका शान्तिमय वातावरण देख चित्तमे बहुत प्रसन्नता हुई और हृदयमें विहारके निम्नांकित लाभ अनुभवमें आये । विहारमे अनेक गुण हैं। प्रथम तो एक स्थान पर रहनेसे प्राणियोंके साथ जो स्नेह होता है वह नहीं होता तथा देशाटन
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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