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________________ मेरी जीवन गाथा लिये तैयार है। जब आपके धर्मकी वातको दुनियाँ सुननेके लिये तैयार है, जाननेके लिये उत्सुक है तब आप ज्ञानके साधन जो शास्त्र हैं उन्हे सामने क्यों नहीं लाते ? शास्त्रसंग्रह करनेकी प्रवृत्ति आप लोगोंमे क्यों नहीं जागृत होती। एक-एक महिलाकी पेटियोंमे वीस २ पञ्चीस २ साड़ियाँ निकलेंगी पर शास्त्रके नामपर २, रूपयेका शास्त्र भी उसकी पेटीमे नहीं होगा। हमारा पुरुषवर्ग भी अपनी शान शौकत या वैभव बतानेके लिये नाना प्रकारकी सामग्री इकट्ठी करता है पर मैने देखा है कि अच्छे अच्छे लखपतियोंके घर दश वीस रुपयके भी शास्त्र नहीं निकलते। क्या वात है ? इस ओर रुचि नहीं । यदि रुचि हो जाय तो जहाँ सालमे हजारों खचे करते हैं वहाँ सौ पचास रुपये खर्च करना कठिन नहीं । गृहस्थ लोग शास्त्र खरीद कर संग्रह करने लगें तो छपानेवाले अपने आप सामने ओ जावें। अस्तु, भैया | बुराई न मानना मेरे मनमें तो जो बात आती है वह कह देता हूँ पर मेरा अभिप्राय निर्मल है मैं कभी किसी जीवका अहित नहीं चाहता। बस्वासागरसे प्रस्थान ज्येष्ठ शुक्ला ११ मं० २००८ के दिन श्री सि. धन्यकुमारजी कटनीवाले आये । बहुत ही महदय मनुष्य हैं ३ घण्टा रहे । प्राप विचार प्रौढ़ और गम्भीर हैं। श्रापका कहना है कटनी पाकर रहिये। जबलपुरकी व्यवस्था भी पारने श्रवण कराई। मैन कसा अभी फटनी तो बहुत दूर है। यह सुनकर चुप रह गये। मुझे अन्तराम
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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