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________________ २५२ मेरी जीवन गाथा तो आपके साथ अवश्य चलेंगे। सुन कर वे बहुत प्रसन्न हुए तथा घर चले गये। हम लोगोंने भोजन किया तदनन्तर सामायिकसे निवृत्त हो १ घण्टा वनारसीविलासका अध्ययन किया। बहुत ही सुगम रीतिसे पदार्थका निरूपण किया है। पुण्य पाप दोनोंको दिखाया है। पुण्यके उदयमे ऐंठ और पापके उदयमे दीनता होती है। दोनों ही आत्माके कल्याणमें वाधक हैं। अतः जिन्हे आत्मकल्याण करना है वे दोनोंसे ममता भाव छोड़ें। काञ्चन कालावसकी वेडीके समान दोनों ही वन्धनके कारण हैं। मनुष्य जन्मकी सार्थकता तो इसीमें है कि दोनों बन्धन तोड़ दिये जायें। दूसरे दिन प्रातःकाल ६ बजे चलकर ८ वजे करारीगाँवके वनमें सड़कके ऊपर निवास किया । यहाँ माँसीसे गुलावचन्द्रजी आ गये। उन्होंने भक्ति पूर्वक आहार दिया। यहाँसे ३ बजे चल कर ४ मील पर माँसीके बाहर नत्थू मदारीका बंगला था उसमें ठहर गय। सानन्द रात्रि व्यतीत की। प्रातः ६३ बजे चलकर ८ वजे झाँसी आ गये और स्नानादि कर श्री मन्दिरजीम प्रवचन किया। पश्चात् श्री राजमल्लजीके यहाँ भोजन हुआ। यहाँ राजमल्ल एक प्रतिभाशाली विद्वान् है । धर्ममें आपकी रुचि अच्छी है। श्राप मन्दिरमे अच्छा काल लगाते हैं। स्वाध्याय करानेमें आपकी बहुत रुचि है। आपके भाई चाँदमल्ल तो एक प्रकारसे पण्डित ही हैं। आपका अधिक काल ज्ञानार्जनमें ही जाना है। आप लोगोंने १ मारवाड़ी मन्दिरका जो मारवाड़ी पंचायत के नामसे प्रसिद्ध है निर्माण कराया है। यहाँ पर श्री मक्खनलाल जी खण्डेलवाल भी हैं। आप १ धर्मशाला बनवा रहे है। उसमें ? कता. भवन भी बोल रहे हैं। आपका विचार विशेष दान करनेका है। बोटी जिसकी आमदनी -५०) मामिल है दान देना चाहते हैं। श्रापका विचार अति उत्तम है परन्तु अभी कार्यमें परिणत गर्ग
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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