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________________ २४८ मेरी जीवन गाया आप बहुत ही उत्तम विचारके मनुष्य हैं। इनके गुरु बहुत ही सरल हैं, कुछ पढ़े नहीं हैं परन्तु अपने आचरणमें निष्णात हैं। मेरा तो यह ध्यान है कि सर्वथा आगमके जाननेसे ही आचरण होता हो यह नियम नहीं। ऐसे भी मनुष्य देखे जाते हैं जिन्हे आगमका अंशमात्र भी ज्ञान नहीं और अहिंसादि व्रतोंका सन्यक पालन करते हैं। 'प्रमत्तयोगात्प्राणव्यपरोपणं हिंसा' इस सूत्रको वाँच नही सकते परन्तु फिर भी इस हिंसासे अपनी आत्माको रक्षित रखते हैं। इसी प्रकार 'असदमिधानमनृतम्' इस सूत्रको पढ़ नहीं सकते फिर भी मिथ्याभाषण कभी नहीं करते। 'अदत्तादानमस्तेयम्' इस सूत्रकी व्याख्या आदि कुछ नहीं जानते किन्तु स्वप्नमे परायी वस्तुंके ग्रहणके भाव नहीं होते। 'मैथुनमब्रह्म' इसके आकारको नहीं जानते किन्तु स्वकीय परिणतिमें बीविषयक भोगका भाव नहीं होता। एवं 'मूर्छा परिग्रहः' इसका अथ नहीं जानते फिर भी पर पदार्थों में मूर्छा नहीं करते। इससे सिद्ध हुआ कि आगममें नो लिखा गया है वह आत्माके विशिष्ट परिणामोंका ही शब्द रचनारूप विन्यास है। श्री ब्रह्मचारी छोटेलालजी तथा भगत सुमेरुचन्द्रजी भी यहाँ आ गये जिससे मुझे परम हर्ष हुआ। इनके साथ चतुर्थीको सानन्द वन्दना की। यह क्षेत्र अत्यन्त रम्य और वैराग्यका उत्पादक है। श्री चन्द्रप्रभके मन्दिरके सामने सङ्गमर्मरके फर्ससे जड़ा हुआ एक बहुत बड़ा रमणीय चबूतरा है । सामने सुन्दर मानस्तम्भ है । चबूतरा इतना बड़ा है कि उसपर ५ सहन मनुष्य सानन्द धर्म श्रवण कर सकते हैं। यहाँसे दृष्टिपात करनेपर पर्वतकी अन्य काली-काली चट्टानें बहुत भली मालूम होती हैं। प्रातःकाल सूर्योदय के पूर्व जब लाल लाल प्रभा सङ्गमर्मरके इवेत फर्सपर पड़ती है तव बहुत सुन्दर दृश्य दृष्टिगोचर होता है। मन्दिरके अन्दर पूजन
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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