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________________ मेरी जीवन गाथा भोजन कराया । ग्रामीण जन बहुत ही सरल व उदार होते हैं। इनमे पापाचारका प्रवेश नहीं होता। ये विषयोंके लोलुपी भी नहीं होते। इसके अनुकूल कारण भी ग्रामवासियोंको उपलब्ध नहीं होते अतः उनके संस्कार अन्यथा नहीं होते। यहाँ १ वजेसे प्रवचन हुआ। ग्रामके बहुत मनुष्य आये। सुखपूर्वक शास्त्र-श्रवण किया। मेरी बुद्धिमे तो आता है कि इस आत्माके अन्तर्गत अनेक सामर्थ्य हैं परन्तु अपनी अज्ञानतासे यह उन्हें व्यक्त नहीं कर पाता । यहाँसे चलकर मगरौल ठहर गये और मगरौलसे प्रातः ६॥ वजे सौड़ा ग्रामके लिये चल दिये। मार्गमे दोनों ओर गेहूंकी उत्तम कृषि थी।२ मील चलकर १ अटवी मिली । १ मीन बरावर अटवी रही । यहाँपर करदी लकड़ीका घना जंगल था परन्तु दतिया सरकार ने वेच दिया, इससे लकड़ी काट दी गई । अव नाम मात्र अटवी रह गई है। यहाँ अटवीके नीचे बहुत कोयला बनता है। यहाँसे १ मील चलकर काली-सिन्धु नदी मिली। वहुत वेगसे पानी वहता है। १ स्थानपर ऊपरसे जल प्रपात पड़ता है। नीचे एक बहुत भारी कुण्ड है। पत्थरकी बहुलता होनेसे कुण्डके चारों ओर दहलाने वनी हैं। कई मन्दिर हैं। एक मन्दिर महादेवजीका है। अनेक घाट वने हुए हैं। पानी अत्यन्त स्वच्छ तथा पीनेमे स्वादिष्ट है । शतशः स्त्री और मनुष्य स्नान करते हैं। स्थान अत्यन्त रम्य और चित्ताकर्पक है। ऐसे स्थान पर यदि कोई धर्मध्यान करे तो बहुत ही उपयोग लगे। परन्तु वर्तमानमे लोगोंकी इस तरहकी विषम परिस्थिति है कि वे अपनी आवश्यकताओकी पूर्तिमे ही अहनिश निमग्न रहते हैं तथा व्यग्रताके कारण प्रसन्नतासे वञ्चित रहते हैं। ___ सौंडामें १० बजे पहुंच स्नानादिसे निवृत्त हो रामदयाल छोटेलालजी खरौआके यहाँ भोजन किया। आगामी दिन मेघका प्रकोप अधिक था अतः प्रातःकालका प्रयाण स्थगित कर सौंडामे
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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