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________________ मेरी जीवन गाथा उत्तरका प्रश्न वीचमे खड़ा कर देना हितकी वात नहीं। अस्तु, इसके बाद दूसरे दिन श्री भैया साहव राजकुमारसिह इन्दौरवालोंकी अध्यक्षतामे जैनसंघ मथुराका वार्पिक अधिवेशन हुआ। यह प्रयत्न पं० राजेन्द्रकुमारजीका था। अपार भीड़के वीच उत्सव प्रारम्भ हुआ। अध्यक्ष महोदयका भाषण हुआ। शुभकामनाएँ आदि श्रवण कराई गई। दूसरे दिन फिर खुला अधिवेशन हुआ। अनेक प्रस्ताव पास हुए। इसके बाद एक दिन श्री काका कालेलकरकी अध्यक्षतामे हीरक जयन्ती समारोह तथा अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पणका समरोह हुआ। विद्वानोंके बाद श्री कालेलकरने हमारे हाथमें ग्रन्थ समर्पण कर अपना भाषण दिया । उन्होंने जैनधर्मकी वहुत प्रशंसा की। साथ ही हरिजन समस्या पर बोलते हुए कहा कि यह स्पर्शका रोग जैनधर्मका नहीं हिन्दू धर्मसे आया है। यदि जैनियोंकी ऐसी ही प्रवृत्ति रही तो मुझे कहना पड़ेगा कि आप लोग नामसे नहीं किन्तु परिणामसे हिन्दू बन जावेंगे। जैनधर्म अत्यन्त विशाल है। उसकी विशालता यह है कि उसमे चारों गतियोंमे जो संज्ञी पञ्चेन्द्रिय प्राणी हैं वे अनन्त संसारके दुखोंको हरनेवाला सम्यग्दर्शन प्राप्त कर सकते हैं। धर्म किसी जातिविशेषका नहीं। धर्म तो अधर्मके अभावमे होता है । अधर्म आत्माकी विकृत अवस्थाको कहते हैं। जब तक धर्मका विकाश नहीं तव तक सर्व आत्माएँ अधर्म रूप रहती हैं। चाहे ब्राह्मण हो, चाहे क्षत्रिय हो, चाहे वैश्य हो, चाहे शूद्र हो, ऋदमें भी चाहे चाण्डाल हो, चाहे भंगी हो, सम्यग्दर्शनके होते ही यह जीव किसी जातिका हो पुण्यात्मा जीव कहलाता है अतः किसीको हीन मानना सर्वथा अनुचित है। समारोह समाप्त होनेके बाद श्राप सध्याकाल हमारे निवास स्थानपर भी आये। मांसाहार आदि विपयोंपर चर्चा होती रही।
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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