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________________ २३२ मेरी जीवन गाथा ही त्यागी लोग तीर्थ यात्रादिके वहाने गृहस्थोसे पैसेकी याचना करते हैं यह मार्ग अच्छा नहीं है । यदि याचना ही करनी थी तो त्यागका आडम्बर ही क्यों किया ? त्यागका आडम्बर करनेके बाद भी यदि अन्तःकरणमे नहीं आया तो यह आत्मवञ्चना कहलावेगी। ____ महाराजने यह भी कहा कि त्यागीको किसी संस्थाबादमे नहीं पड़ना चाहिये। यह कार्य गृहस्थोंका है । त्यागीको इस दल-दलसे दूर रहना चाहिये । घर छोड़ा व्यापार छोड़ा वाल बच्चे छोडे इस भावनासे कि हमारा कर्तृत्वका अहंभाव दूर हो और समताभावसे आत्मकल्याण करें पर त्यागी होने पर भी वह बना रहा तो क्या किया ? इस संस्थावादके दल-दलमे फँसानेवाला तत्त्व लोकैपणाका चाह है। जिसके हृदयमे यह विद्यमान रहती है वह संस्थाओंके कार्य दिखा कर लोकमे अपनी ख्याति बढाना चाहता है पर उस थोथी लोकैपणासे क्या होने जानेवाला है ? जब तक लोगोंका स्वार्थ किसीसे सिद्ध होता है तब तक वे उसके गीत गाते हैं और जब स्वार्थमें कमी पड़ जाती है तो फिर टक्को भी नहीं पूछते । उस लिये आत्मपरिणामोंपर दृष्टि रखते हुए जितना उपदेश वन सके उतना त्यागी दे, अधिककी व्यग्रता न करे ।। एक बात यह भी कही कि त्यागीको ज्ञानका अभ्यास अच्छा करना चाहिये । आज कितने ही त्यागी ऐसे हैं जो सम्यग्दर्शनका लक्षण नहीं जानते, आठ मृल गुणोके नाम नहीं गिना पाते । एमे त्यागी अपने जीवनका समय किस प्रकार यापन करते हैं ये जाने। मेरी तो प्रेरणा है कि त्यागीको क्रम पूर्वक अध्ययन करनेका अभ्यास करना चाहिये। समाजमे त्यगियोकी कमी नहीं परन्तु जिन आगमका अभ्यास है ऐसे त्यागी कितने हैं ? श्रागमनानरे दिना लोकमै प्रतिष्टा नहीं और प्रतिष्टाकी चाह घटी नहीं उसलिय त्यागी
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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