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________________ मेरी जीवन गाथा परिणाम नहीं रहा तब आत्माका उपयोग आत्मामें ही लीन होगायी ब्रह्मचर्य है इस प्रकार यह दश धर्मोका क्रम है । दश धर्मोका यह क्रम जीवनमें उतर जावे तो आत्माका कल्याण हो जावे । विचार कीजिये क्षमा मार्दव आदि धर्म किसके हैं और कहाँ हैं ? विचार करनेपर ये आत्मा हैं और आत्मामे ही हैं परन्तु यह जीव अज्ञानवश इतस्ततः भ्रमण करता फिरता है। लाखोंका धनी व्यक्ति जिस प्रकार अपनी निधिको भूल दर-दरका भिखारी हो भ्रमण करता है ठीक उसी प्रकार हम भी अपनी निधिको भूल उसकी खोजमे इतस्ततः भ्रमण कर रहे हैं । २०६ परम धर्मको पाय कर सेवत विषय कषाय । ज्यों गन्ना को पायकर नीमहि ऊँट चबाय ॥ जिस प्रकार ऊँट गन्ना को छोड़कर नीमको चबाता है उसी प्रकार संसारके प्राणी परम धर्मको छोड़कर विषयकषायका सेवन - करते हैं । उनमे सुख मानते हैं । मोहोदयसे इस जीवकी दृष्टि स्वोन्मुख न हो परकी ओर हो रही है । पर्वके समय प्रवचन होते हैं । वक्ता अपने क्षायोपशमिक ज्ञानके आधार पर पदार्थका निरूपण करता है । यहाँ वक्तासे यदि कुछ विरुद्ध कथन भी होता है तो अन्य समझदार व्यक्तिको समता भावसे उसका सुधार करना चाहिये, क्योंकि शास्त्र प्रवचन धर्मकथा है विजिगीषु कथा नहीं । धर्मकथाका सार यह है कि दश आदमी एकत्र बैठकर पदार्थका निर्णय कर रहे हैं इसमें किसीके जय-पराजयका भाव नहीं है । जहाँ यह भाव है वहाँ वार्तालाप विपमता आ जाती है । यह विपमता पापका कारण है । वार्तालाप के समय वक्ता या श्रोता किसीको यह भाव नहीं होना चाहिये कि हमारी प्रतिष्ठामे बट्टा न लग जावे । समता भावसे 1
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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