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________________ विद्यालयका उद्घाटन और विद्वत्परिषद्की बैठक 989 तो उसका प्रचार करिये यदि किसी प्रकारकी शङ्का रहे तो निर्णय करनेका प्रयास करिये तथा जो सिद्धान्त लिखे जावें वहाँपर अन्य किस रीति से उसे माना है यह भी दिग्दर्शनमे आ जावे | सबसे मुख्य तत्त्व आत्माका अस्तित्व है इसके उत्तरमें अनात्मीय पदार्थोंपर विचार किया जावे । व्याख्यानों द्वारा सिद्धान्तके दिखानेका जितना प्रयास किया जावे उससे अधिक लेखबद्ध प्रणाली से भी दिखाया जावे। इन कार्यों के लिये २५०००) वार्षिक व्ययकी आवश्यकता है । परीक्षणके तौरपर ४ वर्ष यह कार्य करवाया जावे । जो पण्डित इस कार्यको करें उन्हें २००) नकद और भोजन दिया जावे | इनमे जो मुख्य विद्वान् हों उन्हें २५०) दिये जावें । इस तरह ४ पण्डितोंको ८०० ) और मुख्य पण्डितको २५०) तथा सबका भोजन व्यय २५०) सब मिला कर १३००) मासिक तो विद्वानोंका हुआ । इसके बाद ४ अंग्रेजी साहित्यके विद्वान् रक्खे जावें ४०० ) उन्हे दिया जावे १००) भोजन व्यय तथा २०० ) भृत्योंको इस तरह २०००) मासिक यह हुआ । वर्षमे २४०००) हुआ, १०००) वार्षिक यात्राका व्यय । इस प्रकार शान्तिपूर्वक कार्य चलाया जावे तो बहुत कुछ प्रश्न सरल रीतिसे निर्णीत हो जावें । एक आदमी समझ लेवे ५ गजरथ यही हुआ । इससे बहुत कालके लिये जैनधर्म के अस्तित्वकी सामग्री एकत्र हो जावेगी । एक दिन श्री जुगलकिशोरजी मुख्त्यार और पं० परमानन्दजी कलकत्तासे लौट कर आये और कहने लगे कि वीरसेवामन्दिर की नींव दृढ़तम हो गई । कलकत्तावाले बाबू छोटेलालजी तथा बाबू नन्दलालजीकी इस ओर अच्छी दृष्टि है । आप साहित्य के महान् अनुरागी हैं। आप यह चाहते हैं कि मानवमात्रके हृदय में जैनधर्मका विकास हो जावे | जैनधर्म तो व्यापक धर्म है हम किसीको धर्म देते यह बड़ी भारी भूल है । धर्म तो आत्माकी वह परिणति विशेप
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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