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________________ उदासीनाश्रम और सत्कृत विद्यालयका उपक्रम १८५ न हो ? यदि मिथ्याष्टि है तो परमार्थसे पापी है, यदि सम्यक्त्वी है तो उत्तम आत्मा है। यह नियम शूद्रादि चारों वर्गों पर लागू है। परन्तु व्यवहारमें सम्यग्दर्शन और मिथ्यादर्शनका निर्णय वाह्य आचरणोंसे है अतः जिनके आचरण शुभ हैं वे ही उत्तम कहलाते हैं जिनके आचरण मलिन है वे जघन्य हैं। एक उत्तम कुलवाला यदि अभक्ष्य भक्षण करता है वेश्या गमनादि पाप करता है तो उसे भी पापी जीव मानो उसे भी मन्दिर मत आने दो क्योंकि वह शुभाचरणसे पतित है और एक अस्पृश्य सदाचारी है तो वह भगवान्के दर्शनका अधिकारी आपके मतसे न हो परन्तु पञ्चम गुणस्थानवाला अवश्य हो सकता है। ___ पापत्यागकी महिमा है, उत्तम कुलमें जन्म लेनेसे उत्तम हो गये यह कदाग्रह छोड़ो। उत्तम कुलकी महिमा सदाचारसे है कदाचारसे नहीं। नीच कुलीन मलिनाचारसे कलंकित हैं, माँस खाते हैं, मृत पशुओंको ले जाते हैं और आपके शौचगृह साफ करते हैं इसीसे तो उन्हें अस्पृश्य कहते हो तथा पंक्ति भोजनमे आप उन्हे उच्छिष्ट भोजन देते हो। तत्त्वसे कहो उन्हे अस्पृश्य बनानेवाले आप लोग हैं। इन पापोंसे यदि वे परे हो जावें तब भी आप क्या उन्हें अस्पृश्य मानेंगे ? बुद्धिमें नहीं आता। आज एक भंगी यदि ईसाई हो जाता है और पढ़ लिखकर डाक्टर हो जाता है तो आप लोग उसकी दवा गट गट पीते हैं या नहीं ? क्यों उससे स्पर्श कराते हो ? आपसे तात्पर्य बहुभाग जनतासे है। आज जो पाप करते हैं वे यदि किसी आचार्य महाराजके सानिध्यको पाकर पापोंका त्याग कर देवेंतो क्या वे साधु नहीं हो सकते ? व्याघ्रीने सुकौशल स्वामीके उदरको विदारण किया और वहीं श्रीकीर्तिधर मुनीके उपदेशसे विरक्त हो समाधिमरण कर स्वर्ग लक्ष्मीकी भोक्ता हुई। अतः सर्वथा किसीका निषेध कर अधर्मके, भागी मत बनो। हम
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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