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________________ ૧૧૨ मेरी जीवन गाथा चाहिये कि मै शुद्ध चैतन्यज्योतिरूप हूँ और जो ये अनेक भाव प्रतिक्षण उल्लसित होते हैं वे सब मेरे नहीं हैं स्पष्ट ही पर द्रव्य हैं। ___ एक दिन (अपाढ़ सुदी १३ ) को श्री पं० जुगलकिशोरजी मुख्त्यारने जैनधर्मके सिद्धान्तपर अच्छा प्रकाश डाला। अन्तमे आपने यह भाव प्रदर्शित किया कि हमे जैनशासनको प्रकाशमे लानेका प्रयत्न करना चाहिये। आज लोगोंमे जैनधर्मके प्रति जिज्ञासा उत्पन्न हो रही है। परस्परका तनाव भी लोगोंका न्यून हो गया है, इसलिये यह अवसर है कि हम जैनधर्मके प्राचीन ग्रन्थ जनताके सामने लावें और अच्छे रूपमे लावें। जैनधर्मके पवित्र सिद्धान्त मन्दिरकी चहार दीवालोंके अन्दर सदियोंसे कैद चले आ रहे हैं उन्हे हमे बाहर प्रकाशमे लाना चाहिये । मुख्त्यार साहवने यह बात इस टॅगसे कही कि सबको पसंद आ गई। आपका वीरसेवा मन्दिर सरसावामे है । लोगोंने प्रेरणा दी कि वह स्थान आपकी संस्थाके लिये उपयुक्त नहीं है। यहाँ राजधानीम उसका संचालन होना चाहिये । जनताने स्थानकी व्यवस्था करनेका आश्वासन दिया । जैन समाजमे रुपयेके व्ययकी त्रुटि नहीं, परन्नु उसका उपयोग कुछ विवेकके साथ नहीं होता। यदि इसीका उपयोग यथार्थ हो तो मानवजातिका बहुत कुछ कल्याण हो सकता है । मानवजातिकी कथा छोड़ो, जैनधर्म तो संसार मात्रके प्राणियोका संरक्षक है। श्रीकर्मानन्दजी (निजानन्दजी) के प्रवचन रोचक होते हैं। जनतामे धर्म श्रवणकी उत्सुकता बहुत है, परन्तु एकत्रित होकर इतना कलरव करते हैं कि सब आनन्द किरकिरा हो जाता है। सावन वदी ७ सं० २००६ को रविवार था, इसलिये जनताकी भारी भीड़ उपास्थित हुई। श्री तु० चिदानन्दजी महाराजने मनुष्यों समझानेकी बड़ी चेष्टा की, परन्तु उनका सव प्रयत्न जनताके कलरर.
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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