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________________ १०६ मेरी जीवन गाथा मन्दिरका नाम 'पंचायती मन्दिर' प्रचलित हुआ । दिल्ली के अतिरिक्त आपने हस्तिनापुर, अलीगढ़, करनाल, सोनपत, हिसार, सांगानेर और पानीपत आदि स्थानोंपर भी मन्दिर निर्माण कराये हैं। __ हस्तिनागपुरके मन्दिर वनवानेकी तो विचित्र कथा है। वहाँके राजाको सरकारी खजानेका २ लाख रुपया भरना था पर भरनेका समय निकट आने पर वह रुपयोंका प्रवन्ध न कर पाया। इतना रुपया कौन देगा? इस चिन्तामे राजा निमग्न था। कुछ लोगोंने राजा हरसुखरायका नाम सुभाया। राजाने अपना आदमी हरसुखरावजीके पास भेजा। उन्होंने आश्वासन दिया कि व्यग्र न हो, समय पर आपका रुपया खजानेमे जमा हो जायगा। समयके पूर्व ही उन्होंने दो लाख रुपया खजानेमें जमा कर दिया और अपने यहाँ वहीमे वह रुपया राजाके नाम न लिखकर हस्तिनागपुरमे मन्दिर बनवानेके लिये राजाके पास भेजे, यह लिखा दिया। समयने पलटा खाया । हस्तिनागपुरके राजाकी स्थिति सुधरी और उन्होंने २ लाख स्पया राजा हरसुखरायजीवे पास पहुंचाया। हरसुखरायजीने कागज पत्र दिखाकर कहा कि हमारे यहाँ आपके राजाके नाम कोई रुपया नहीं निकलता। लोग बड़े आश्चर्यमें पड़ कि दो लाख रुपयेकी रकम इनके यहाँ नामें नहीं पड़ी। जब इस ओरसे अधिक आग्रह हुआ तव उस वर्पकी वही निकलवाई गई तथा उसमे लिखा राजासाहवको बताया गया कि यह रुपया ता उन्होंने हस्तिनागपुरमें मन्दिर वनवानेके लिये आपके पास भेजा था। राजा उनके व्यवहारसे गद्गद हो गया और उसने अपनी देखरेखमें हस्तिनागपुरका मन्दिर बनवा दिया। आप अपने व्यवहारसे समाजके गरीवसे गरीव व्यक्तिका अपमानित नहीं करते थे तथा सवको साथ लेकर चलते थ। वि० सं० १८६७ मे आपके प्रयन्नसे शाही लवाजमाके साथ रथोत्सव
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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