SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिल्लीका ऐतिहासिक महत्त्व और राजा हरसुखराय १०१ दिल्लीका यह ऐतिहासिक मन्दिर जो अपनी कलाके लिये प्रसिद्ध है, दर्शनीय है। उसकी अनूठी क्रासनरी अपूर्व और आश्चर्य कारक है । दिल्लीके वर्तमान ऐतिहासिक स्थानोंमे इसकी गणना की जाती है। भारत पर्यटनके लिये आनेवाले विदेशी जन दिल्लीके पुरातन स्थानोंके साथ इस मन्दिरकी कलात्मक पच्चीकारी और सुवर्णङ्कित चित्रकारीको देखकर हर्षित तथा विस्मित होते हैं। इस मन्दिरके निर्माता जैनसमाजके प्रसिद्ध राज्यश्रेष्ठी लाला हरसुखराय हैं जो राजाकी उपाधिसे अलंकृत थे। उन्होंने वि० सं० १८५७ मे इसे वनवाना शुरू किया था और सात वर्षके कठोर परिश्रमके वाद वि० सं० १८६४ में यह बनकर तैयार हुआ था। इसका प्रतिष्ठा महोत्सव सं० १८६४ वैशाख सुदी ३ (अक्षय तृतीया ) को सूर्य मन्त्रपूर्वक हुआ था। उस समय इस मन्दिरकी लागत लगभग सात लाख रुपया आई थी जब कि कारीगरको चार आना और मजदूरीको दो आना प्रतिदिन मजदूरीके मिलते थे।। मन्दिरके वाहर प्रवेशद्वारके ऊपर बनी हुई कलात्मक छतरी साचीके तोरणद्वारोंके समान सुन्दर तोरणद्वारोंसे अलंकृत है। उसमे पापाणका कोई भी ऐसा हिस्सा नहीं दीखता जिसमे सुन्दर वेलबूटा, गमला अथवा अन्य चित्ताकर्षक चीजें उत्कीर्ण न की गई हो । यह छतरी दशकको अपनी ओर आकर्षित किये बिना नहीं रहती । मन्दिरमे प्रवेश करते ही दर्शकको मुगलकालीन १५० वर्ष पुरानी चित्रकलाके दर्शन होते हैं। मन्दिरकी छतें लाल पाषाणकी हैं और उनपर बारीक घुटाईवाला पलस्तर कर उसके ऊपर चित्रकारी अङ्कित की गई है। चित्रकारी इतनी सधी हुई कलमसे बनाई गई है कि जिसे देखकर दर्शक आनन्द विभोर हो उठता है । ज्यों ज्यों दर्शककी दृष्टि सभी दहलानी दरवाजों और गोल डांटों आदि मे अंकित चित्रकला देखती है त्यों त्यों उसकी अतृप्ति बढ़ती जाती
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy