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________________ मेरी जीवन गाथा बजेसे सभा हुई। मनुष्य समुदाय अच्छा था, परन्तु कोई तत्व नहीं निकला। प्रायः प्रति दिन यही कथा होती है। यहाँ की समाजने ५०१) स्याद्वाद विद्यालयको दिये । ५०१) गुरुकुलको हो गये। रुपया मिलता है पर सदुपयोग होना अधिकारियोंके हाथकी बात है। ___यहाँसे ५१ वजे प्रातः ५ मील चलकर अम्बाड़ा आ गये। बड़े स्वागतसे लोगोंने धर्मशालामे ठहराया । पश्चात् मन्दिरमें गया, प्रवचन हुआ। लोगोने स्वाध्यायका नियम लिया। धर्मशालामे कई महाशयों ने, जो कि हरिजनोंमे थे, मदिराका त्याग किया। वई महाशयोंने माँसका त्याग किया। खेद इस बातका है कि जैनी भाई स्वयं वीचमें बोलने लगते हैं इससे जनतामे प्रभाव नहीं रहता। सायंकाल व्याख्यान हुआ। जैनेतर जनता अति प्रसन्न हुई। यहाँ १५ घर जैनियोंके हैं। मन्दिर वहुत सुन्दर है। शास्त्र प्रवचनका हाल बहुत बड़ा है। दूसरे दिन प्रातःकाल समयसारका प्रवचन किया। अनन्तर रत्नकरण्डश्रावकाचारके भावना प्रकरणसे ३ भावनाओंका वर्णन किया। पं० सदासुखरायजीने बहुत सुन्दर वर्णन किया है। सवने प्रेमसे सुना, परन्तु जिनको उनपर विचार करना चाहिये वे कदापि उनका पालन नहीं करते यह महती त्रुटि है। अम्बाड़ासे ४ मील चलकर इसलामपुर आ गये। यह वस्ती पठान लोगों की है। ३ घर जैनियोंके हैं। मार्गमे १ पठानने ६ आम उपहारमें दिये। १ जैनी भाई लेनेको प्रस्तुत नहीं हुए ! मैंने कहा कि अवश्य लेना चाहिये। आखिर यह भी तो मनुष्य हैं। इनके भी धर्मका विकास हो सकता है। बाह्य आचरणके अनुकूल ही मनुप्योंका व्यवहार चलता है। इससे ही हम लोग उनसे घृणा करने लगते हैं, अतः आवश्यकता अन्तरंग याचरण निर्मल
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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