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________________ ( १० ) इन्दौर में दिये गए प्रवचनों का संग्रह पीछे 'नय दर्पण' नामक स्याद्वाद न्याय विषयक ग्रन्थके रूप में प्रसिद्ध हुआ और सहारनपुर में दिए गए कुछ प्रवचन शान्तिपथ-प्रदर्शनके द्वितीय संस्करण में सम्मिलित कर दिये गए। क यद्यपि समाज में आपकी प्रतिष्ठा बराबर बढ़ रही थी, परन्तु आपका सत्यान्वेषी चित्त भीतर ही भीतर किसी दूसरी दिशा की ओर जा रहा था । उसे यह जानते देर नहीं लगी कि जिस दिशा में वह चला जा रहा है वह सत्य नहीं सत्य है, इस जन रञ्जना के व्यापारने उसे पथ-भ्रष्ट कर दिया है, श्रीर यदि शीघ्र न सम्भला तो उसकी भी वही गति हो जानी निश्चित है जो कि अन्य साधकों की आज प्रायः हो रही है । अत: आपने इस सकल प्रपञ्च को छोड़कर एकान्तवास तथा मौन-वृत्ति धारण कर ली, प्रवचन देना तथा इस उद्देश्य से स्थान-स्थान भ्रमण करना छोड़ दिया और रोहतक जाकर नगरसे बाहर श्री नन्दलालजी की बगीची में अकेले रहने लगे । त्यागी जनों में इस प्रकार की वृत्ति आजकल सर्वथा प्रसिद्ध है इसलिये समाज में आपके प्रति सन्देहात्मक दृष्टि उठना स्वाभाविक था । यह सन्देह धीरे-धीरे क्षोभका रूप धारण करने लगा, परन्तु आपके सत्यान्वेशी दृढ़ संकल्प की डिग्री सक इतना सम सामर्थ्य उसमें नहीं थी । प्रकृति आपकी इस विजय को देख न सकी और १६७० की सर्दियों में श्वास रोगने अपनी पूरी शक्ति के साथ आपपर आक्रमण कर दिया । दशा शोचनीय हो गई और आप समाधि मरण धारण करने का विचार करने लगे । परन्तु जब डाक्टरों तथा वैद्यों ने यह विश्वास दिलाया कि 'यह सर्व विपत्ति वास्तव में पानीकी कमी के कारणसे है' और यदि प्राप शामको एकबार पानी लेना स्वीकार कर लें तो सहज दूर हो सकती है। रोहतक समाज ने भी आपसे अपना विचार बदल देने का आग्रह किया और सुझाया कि 'देह त्याग करने से सत्यपथपर जो प्रगति वर्तमान में चल रही है वह रुक जायेगी और साथ ही जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश के प्रकाशन का जो काम अधूरा पड़ा है वह अधूरा ही क P FUR PUFTE
SR No.009937
Book TitleJinendra Siddhant Manishi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages25
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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