SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७ ) आक्रमण होते रहे, पिता से श्वास रोग प्राप्त हुआ, और सन् १९३८ में जब आप केवल १६ वर्ष के थे आपको क्षय रोगने आ दबाया । तदपि न जाने कितनी दृढ़ है आपकी आयु डोर कि भयंकर से भयंकर झटकों से भी भग्न नहीं हुई, सम्भवतः इसलिये कि यह जर्जर शरीर आपको आत्म-कल्याण के लिये मिला है, किसी लौकिक प्रयोजन से नहीं । क यद्यपि बचपन में धर्म कर्मका कोई विशेष परिज्ञान आपको नहीं था, प्रमादवश मन्दिर भी नहीं जाते थे और न कभी शास्त्रादि पढ़ते या, सुनते थे, तदपि जन्म से ही आपका धार्मिक संस्कार इतना सुदृढ़ था कि क्षय-रोग से ग्रस्त हो जानेपर जब डाक्टरोंने आपसे मांस तथा अण्डे का प्रयोग करने के लिये आग्रह किया तो आप ने स्पष्ट जवाब दे दिया। कॉड लिवर आयल तथा लिवर ऐक्सट्रैक्ट का इज्जेक्शन भी लेना स्वीकार नहीं किया, यहाँ तक कि इस भयसे कि 'कदाचित दवाई में कुछ मिलाकर न पिलादे' अस्पताल की बनी औषधि का भी त्याग कर दिया। इस मार्ग की रुचि प्रापको कैसे जागृत हुई, यह एक विचित्र घटना है । सन् १६४६ का पर्युषण पर्व था, मूसलाधार पानी पड़ रहा था, घर के सभी व्यक्ति मन्दिर चले गए थे और आप घरपर अकेले थे । न जाने क्यों सहसा आपका हृदय से उठा, बहुत देर तक पड़े रोते रहे, जब चित्त घबड़ा गया तो उठकर मन्दिर चले गए। वर्षा में सब कपड़े भींग गए, पाँव गन्दे हो गए, तदपि ऐसेके ऐसे जाकर शास्त्र सभा में बैठ गए। आपके पूज्य पिता श्री जयभगवान्जी प्रवचन कर रहे थे, किसी प्रसंग में उनके मुखसे 'ब्रह्मास्मि' शब्द निकला और यह शब्द ही आपके लिये गुरु-मन्त्र बन गया । अगले दिन से ही शास्त्र- स्वाध्याय प्रारम्भ कर दी और धीरे-धीरे उसमें आपका चित्त इतना रम गया कि बिना किसी संकल्पके रूप से कोश' जैसी अपूर्व कृतिका जनेन्द्र सिद्धान्त का उदभ्व हो गया । इस महान कृति का परिचय तो आगे दिया जायेगा, यहाँ इतना बता देना
SR No.009937
Book TitleJinendra Siddhant Manishi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages25
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy