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________________ ( १३ ) में यह कार्य भी पूरा हो गया । एक अभी यह काम अच्छी तरह पूरा भी नहीं हो पाया था कि पुनः रोग ने आपके शरीरपर आक्रमण कर दिया। आपको लगाकि सरस्वती माता ही इस बहाने मुझे रोहतकवाले संकल्प की याद दिला रही है । इसलिये अवसर को सर्वथा अनुकूल समझते हुए किसीसे कुछ कहे बिना मौन धारण करके अनशन प्रारम्भ कर दिया। समाज में खलबली पड़ जाना स्वाभाविक था । पं० कैलाश जी, पं० दरबारी लालजी कोठिया, कटनीवाले पं० जगन्मोहन लालजी आदि विद्वानों को साथ लेकर बा० सुरेन्द्रनाथजी ने अपनी आशंका प्रगट करते हुए आपको समझाने का प्रयत्न किया, सकल समाज ने भी अपना हार्दिक दुःख व्यक्त करते हुए आप पर लौट जाने के लिये दबाव दिया, परन्तु इतने पर भी जब आपने अपना मौन भंग नहीं किया तो इधर उधर ग्रादमी दौड़ाये गए । कोल्हापुर से पूज्य मुनिवर श्रीसमन्त भद्रजीका और पवनारसे पूज्य बिनोबाजी का लिखित आदेश प्राप्त करके आपके समक्ष रख दिया गया। इस प्रकार बाध्य होकर आपको पुनः नत होना पड़ा। आपका यह अनशन ४० दिन तक चला परन्तु शरीर बिगड़ने के बजाय बराबर सुधरता गया, यह एक आश्चर्य की बात है । ईसरी में रहकर विविक्त-देश-सेवित्व, मौन तथा ज्ञान ध्यान की जो आभ्यन्तर साधना आपने की उसके कारण आपका वैराग्य इतना बढ़ गया कि वर्णी शताब्दी के अवसरपर समाजका अत्यधिक ग्राग्रह होनेपर भी आपने स्टेजपर प्राना स्वीकार नहीं किया। इसके अतिरिक्त अपनी जन-मान्य कृतियोंपर अपना नामतक देने की आज्ञा आपने प्रकाशकों को नहीं दी । 'समरण-सुत्त' तथा 'वर्णी' दर्शन' जैसे महत्वपूर्ण तथा अनुपम ग्रन्थों पर आपका नाम कहीं दृष्टिगत नहीं होता । जैनेन्द्र- सिद्धान्तकोश में आपका चित्र टंकित करने के लिये भारतीय ज्ञानपीठने जब आपसे अपना फोटो भेजने की प्रार्थनाकी तो फोटो भेजने के बजाय आपने उनको ऐसा करने से रोक दिया। इससे पहले भी इसी प्रकारकी एकघटना
SR No.009937
Book TitleJinendra Siddhant Manishi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages25
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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