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________________ भगवई सुत्त के महालए णं भंते ! पुढविसरीरे पण्णत्ते ? गोयमा ! अणंताणं सुहमवणस्सइकाइयाणं जावइया सरीरा से एगे सुहमवाउसरीरे, असंखेज्जाणं सुहमवाउसरीराणं जावइया सरीरा से एगे सुहुमतेउसरीरे, असंखेज्जाणं सुहुमतेउकाइयसरीराणं जावइया सरीरा से एगे सहमे आउसरीरे, असंखेज्जाणं सहम-आउक्काइयसरीराणं जावइया सरीरा से एगे सुहुमे पुढविसरीरे, असंखेज्जाणं सुहुमपुढवि काइयसरीराणं जावइया सरीरा से एगे बायरवाउसरीरे, असंखेज्जाणं बायरवाउक्काइयाणं जावइया सरीरा से एगे बायरतेउसरीरे, असंखेज्जाणं बायरतेउकाइयाणं जावइया सरीरा से एगे बायरआउसरीरे, असंखेज्जाणं बायरआउकाइयाणं जावइया सरीरा से एगे बायरपढवि सरीरे । एमहालए णं गोयमा ! पुढविसरीरे पण्णत्ते । पुढविकाइयस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहाणामए रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स वण्णगपेसिया तरुणी बलवं जुग जुवाणी अप्पायंका जाव णिठणसिप्पोवगया, णवरं चम्मेठ्ठ-दुहण-मुट्ठिय समाहय- णिचिय-गत्तकाया ण भण्णइ, सेसं तं चेव । सा णं तिक्खाए वइरामईए सण्हकरणीए तिक्खेणं वइरामएणं वट्टावरएणं एगं महं पढविकाइयं जउगोलासमाणं गहाय पडिसाहरिय-पडिसाहरिय पडिसंखिवियपडिसंखिविय जाव इणामेव त्ति कट्ट तिसत्त-खुत्तो उप्पीसेज्जा, तत्थ णं गोयमा ! अत्थेगइया पुढविक्काइया आलिद्धा अत्थेगइया पुढविक्काइया णो आलिद्धा, अत्थेगइया संघट्टिया अत्थेगइया णो संघट्टिया, अत्थेगइया परियाविया अत्थेगइया णो परियाविया, अत्थेगइया उद्दविया अत्थेगइया णो उद्दविया, अत्थेगइया पिट्टा अत्थेगइया णो पिट्ठा, पुढविकाइयस्स णं गोयमा ! एमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता | पुढविकाइए णं भंते ! अक्कंते समाणे केरिसियं वेयणं पच्चणुब्भवमाणे विहरइ ? गोयमा ! से जहाणामए केइ परिसे तरुणे बलवं जाव णिउणसिप्पोवगए एग परिसं जुण्णं जराजज्जरियदेहं जाव दुब्बलं किलंतं जमलपाणिणा मुद्धाणंसि अभिहणिज्जा, से णं गोयमा ! पुरिसे तेणं पुरिसेणं जमलपाणिणा मुद्धाणंसि अभिहए समाणे केरिसियं वेयणं पच्चणुब्भवमाणे विहरइ ? अणिटुं समणाउसो ! तस्स णं गोयमा ! पुरिसस्स वेयणाहिंतो पुढविकाइए अक्कंते समाणे एत्तो अणिद्वतरियं चेव अकंततरियं जाव अमणामतरियं चेव वेयणं पच्चणब्भवमाणे विहरइ । आउयाए णं भंते ! संघट्टिए समाणे केरिसियं वेयणं पच्चणब्भवमाणे विहरइ । गोयमा ! जहा पुढविकाइए | एवं तेउकाए वि, एवं वाउकाए वि, वणस्सइकाए वि || सेवं भंते! सेवं भंते ! || | तइओ उद्देसो समत्ता || 464
SR No.009905
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Mool Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorDevardhigani Kshamashaman
PublisherGlobal Jain Agam Mission
Publication Year2012
Total Pages653
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size8 MB
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