SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 457
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७ ८ 18 भगवई सुत्त बेइंदियाणं पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णपए कडजुम्मा, उक्कोसपए दावरजुम्मा, अजहण्ण-मणुक्कोसपए सिय जुमा जाव सिय कलियोगा । एवं जाव चउरिंदिया । सेसा एगिंदिया जहा बेइंदिया । पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जाव वेमाणिया जहा णेरइया । सिद्धा जहा वणस्सइकाइया । इत्थीओ णं भंते ! किं कडजुम्मा पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णपए कडजुम्माओ, उक्कोसपए कडजुम्माओ, अजहण्ण-मणुक्कोस- पए सिय कडजुम्माओ जाव सिय कलियोगाओ, एवं असुर- कुमारित्थीओ वि जाव थणियकुमारइत्थीओ। एवं तिरिक्खजोणियइत्थीओ I एवं मणुसित्थीओ । एवं वाणमंतर- जोइसियवेमाणियदेवित्थी ओ । जावइया णं भंते ! वरा अंधगवण्हिणो जीवा तावइया परा अंधगवण्हिणो जीवा ? हंता गोयमा ! जावइया वरा अंधवगण्हिणो जीवा तावइया परा अंधगवण्हिणो जीवा । सेवं भंते! सेवं भंते ! ॥ चउत्थो उद्देसो समत्ता ॥ अट्ठारसमं सतं पंचमो उद्देसो दो भंते ! असुरकुमारा एगंसि असुरकुमारावासंसि असुरकुमारदेवत्ताए उववण्णा, तत्थ णं एगे असुरकुमारे देवे पासाईए, दरिसणिज्जे, अभिरूवे, पडिरूवे; एगे असुरकुमारे देवे से णं णो पासाईए, णो दरिसणिज्जे, णो अभिरुवे, णो पडिरूवे, से कहमेयं भंते ! एवं ? गोयमा ! असुरकुमारा देवा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा वेउव्वियसरीरा य अवेउव्वियसरीरा य, तत्थ णं जे से वेउव्वियसरीरे असुरकुमारे देवे से णं पासाईए जाव पडिरूवे; तत्थ णं जे से अवेउव्वियसरीरे असुरकुमारे देवे से णं णो पासाईए जाव णो पडिरूवे । से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चइ जाव णो पडिरूवे ? गोयमा ! से जहाणामए - इह मणुयलोगंसि दुवे पुरिसा भवंति - एगे पुरिसे अलंकिय- विभूसिए, एगे पुरिसे अणलंकियविभूसिए, एएसि णं गोयमा ! दोण्हं पुरिसाणं कयरे पुरिसे पासाईए जाव पडिरूवे, कयरे पुरिसे णो पासाईए जाव णो पडिरूवे, जे वा से पुरिसे अणलंकियविभूसिए, जे वा से पुरिसे अलंकिय- विभूसिए ? भगवं ! तत्थ णं जे से पुरिसे अलंकियविभूसिए से णं पुरिसे पासाईए जाव पडिरूवे, तत्थ णं जे से पुरिसे अणलंकियविभूसिए से णं पुरिसे णो पासाईए जाव णो पडिरूवे । से तेणट्टेणं गोयमा ! जाव णो पडिरूवे । दो भंते ! णागकुमारा देवा एगंसि णागकुमारावासंसि पुच्छा ? गोयमा ! एवं चेव जाव थणियकुमारा । वाणमंतर - जोइसिय-वेमाणिया वि एवं चेव । 447
SR No.009905
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Mool Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorDevardhigani Kshamashaman
PublisherGlobal Jain Agam Mission
Publication Year2012
Total Pages653
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy