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सुयगडांग सूत्र - पढमो सुखंधो
पाणे ण हणंति सव्वसो, पावाओ विरयाऽभिव्वुिड
विता अहमेव लुप्पड़, लुप्पंति लोगंसि पाणिणो । एवं सहिएऽहिपासए, अणिहे से पुट्ठोऽहियासए ||
धुणिया कुलियं व लेववं, किसए देहमणासणाइहिं । अविहिंसामेव पव्वए, अणुधम्मो मुणिणा पवेइओ ॥
सउणी जह पंसुगुंडिया, विहुणिय धंसयइ सियं रयं । एवं दविओवहाणवं, कम्मं खवइ तवस्सि माहणे ॥ उट्ठियमणगारमेसणं, समणं ठाणठियं तवस्सिणं । डहरा वुड्ढा य पत्थए, अवि सुस्से ण य तं लभे जणा ॥
जइ कालुणियाणि कासिया, जइ रोयंति व पुत्तकारणा । दवियं भिक्खुं समुट्ठियं, णो लब्भंति ण संठवित्त ||
जइ वि य कामेहिं लाविया, जइ णेज्जाहि णं बंधिरं घरं । जइ जीवियं णावकंखए, णो लब्भंति ण संठवित्त ॥
सेहंति य णं ममाइणो, माया पिया य सुया य भारिया । पोसाहि णे पासओ तुमं, लोयं परं पि जहाहि पोसणे ॥
अण्णे अण्णेहिं मुच्छिया, मोहं जंति णरा असंवुडा | विसमं विसमेहिं गाहिया, ते पावेहिं पुणो पगब्भिया ||
तम्हा दवि इक्ख पंडिए, पावाओ विरएऽभिणिव्वुडे । पणया वीरा महावीहिं, सिद्धिपहं णेयाउयं धुवं ॥
वेयालियमग्गमागओ, मण वयसा काएण संवुडो ।
चिच्चा वित्तं च णायओ, आरंभं च सुसंवुडे चरे ॥ त्ति बेमि ॥ ॥ पढमो उद्देसो समत्तो ॥
बीओ उद्देसो
तयसं व जहाइ से रयं इति संखाय मुणी ण मज्जइ । गोयण्णतरेण माहणे, अहऽसेयकरी अण्णेसिं इंखिणी ॥
जो परिभवइ परं जणं, संसारे परियत्तइ महं ।
अदु इंखिणिया उ पाविया, इति संखाय मुणी ण मज्जइ ॥
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