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________________ [ ४३ ] देख 'अब बतातुझसे कौन कम है जिसका नाम वताता फिरे। १०-७६५. प्रानी परिस्थिति को देख, इस समय तू ने पाया ही क्या ? जिस पर मान किया जावे 'वैभव और ऐश्वर्य ! 'चक्रवर्ती को देख. तेरे पास है हो क्या ? सो भी चक्री का वैभव विलीन हो जाता है । "ऋद्धि चमत्कार ? 'महर्षियों को देख तून पाया ही क्या ?... ज्ञान ? 'सर्वज्ञ को सोच । अरे तू तो अपनी राग द्वप आदि के सम्बन्ध से कलङ्कित है, गरीब है, क्या इतराता? ११-७६६. आत्मन् ! अपने अनंत ज्ञान दर्शन शक्ति सुख स्वभाव को तो देख, और देख 'यदि तू यश मान वैभव पर ही इतराता रहा तो अनंत ऐश्वर्य से हाथ धो बैठ । १२-७६७ यदि नाक के लिये मरेगा तो मर कर इतनी नाक पावेगा जो धरती पर लटकती रहेगी । मान के लिये जितना प्रयत्न करोगे उसका फल यह होगा जो
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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