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________________ [४०] ७ सन्मान-अपमान १--११६. जिन आत्मावों से आप आदर यश चाहने हो, उन्हें पहचाना है या नहीं; पहिचाना ! यह बात तो झूठ है क्योंकि उनका यथार्थ रूप जानने वाले के आदर व ख्याति की चाह नहीं हो सकती, अतः यदि पहिचान लिया तो सम्मान व प्रसिद्धि की चाह छूट जाना चाहिये, यदि नहीं पहिचाना तो अज्ञात से सन्मान चाहना मूर्खता है । ॐ फ २- ३६३, जो खुद के सन्मान की चेष्टा करता है वह अपमान के सन्मुख है, अरे ! यहां तो सभी जात्या एक हैं, जिस दृष्टि में मान अपमान का भाव होता वह दृष्टि ही भृतार्थ है । फॐ फ्र ३ - ३७८. नम्रता की परीक्षा अधिकगुणी या अधिक यश वाले पुरुषों के समागम में होती है । फॐ फ
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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