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________________ [ ३४ ] सूठ बड़प्पन में आकर अथवा विशेष रागो बनकर परपरिणति के परिश्रमरूप क्लेशों को ही सहता रहूंगा । ॐ १२- ३५१. निन्दाश्रवण से होने वाले क्लेश का मिटाना तो सरल है परन्तु प्रशंसाश्रवण से किये जाने वाले उपक्रमों से होने वाला क्लेश मिटाना कठिन है, अतः मनोहर ! प्रशसा जाल से बचो किसी के चक्र में मत श्रावो 1 फॐ फ १३- ३६१. किसी के निन्दा के शब्द मत कहो क्योंकि उस से तुम्हारा उत्कर्ष नहीं और फिर संसार में अनंत प्राणी हैं किस किस की समालोचना करते ? उनमें से एक वह भी है, अथवा तुम समालोचना के अधिकारी नहीं क्यों कि तुम स्वयं समालोच्य हो अन्यथा तुम में परनिन्दन दोष की स्थिति नहीं रहती । फ ॐ भ १४-३६२. अपनी प्रशंसा के शब्द मत सुना क्योंकि ये शब्द आत्मघात में निमित्त होने के अतिरिक्त प्रशंसक से हो जाने वाले सम्बन्ध के हेतु विपत्ति और चिन्ता
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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